बुधवार, 22 दिसंबर 2010

ये कैसा हिन्दुस्तान

कटघरे में खड़ा मीडिया
जो है चैथा स्तम्भ
हम हिन्दुस्तानी होने का
फिर भी भरते ‘दम्भ’

फिर भी भरते ‘दम्भ’
निज ढ़पली ही रहे बजाते
नाकामी, भ्रस्टाचारों से
निषदिन देष को रहे सजाते

निषदिन देष को रहे सजाते
मंहगाई औ घोटालों से
जनता का पैसा रहे लूटते
मंचों औ चैपालों से

राज काज भी हुआ स्वार्थी
मरती जनता भूखी
सत्ता लोलुप नभ में घूमें
कुछ लोग न पायें सूखी

कुछ लोग न पायें सूखी
नही उनके सिर छत है
मुक्त कराया देष आज
सैनानी आहत हैं ।

सैनानी आहत हैं,
फैली चारों ओर उदासी
मीडिया और प्रषासन
बन गया नेताओं की दासी

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

06 December, 2010

सिकंदर को कौन समझाए !!!
- रश्मि प्रभा...

कोई मानना नहीं चाहता
सही शब्दों में कहें
तो स्वीकार करना नहीं चाहता
कि जिस धरती पर खून खराबे हुए
जहाँ अपमान के शूल बिछाए गए
वहाँ कोई घर बन सकता है
और वहाँ की दीवारें गा सकती हैं !....
अपने 'स्व' की मद में डूबा इन्सान
सूक्तियां बोलता है
रुपयों के बल पर
सिकंदर बनता है
पर एक टूटी झोपड़ी
महल के अस्तित्व को फीका कर जाये
बर्दाश्त नहीं कर पाता है
हर मोड़ पर झोपड़ी की रोटी का सोंधापन
प्रतिस्पर्धा का सबब बन जाता है
....
दुखद तो है
पर कड़वा सत्य है
महल के हर कदम
फैसले की मुहर लिए बढ़ते हैं
'झोपड़ी को तोड़ दिया जाये' !
जब जब यह फैसला होता है
उस दिन झोपड़ी की दीवारें नहीं गातीं
....
और भगवान् -
जी जान से नई धुन बनाता है
दीवारों को जिंदा करने के लिए
खुद गाता है
....
अब यह सिकंदर को कौन समझाए !!!

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी दिवस

हिंदी में बोलें और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं
आओ हम खुद को पहचानें
अंग्रेजी संग हुए बेगाने
जिसे बोलते जीभ लचकती
अधरों पर मुस्कान न आये
हिंदी में बोले और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं

हिंदी का आया पखवारा
भागी इंग्लिश देख अखारा
भाव बिखर कर गिरती जाती
हिंदी के सम्मुख टिक न पाती
कर्ण-प्रिय लगती निज भाषा
जन-जन में ये भाव जगाये
हिंदी में बोलें और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं

हिंदी की उन्नति के खातिर
तन-मन से यदि होंगें हाजिर
उन्नति अपनी ही होगी
दुनियां सपनों सी ही होगी
रहे अँधेरा न कहीं धरा पर
आओ ऐसा दीप जलाएं
हिंदी में बोलें और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं





मंगलवार, 7 सितंबर 2010

कवित्व

चली चर्चा एक बार कवित्व पर
कि ‘कविता क्या होती है?
किसी ने कहा कि
‘कविता’ कवि का भाव है
‘कवि के विचारों का
क्रमात्मक बहाव है’
किसी ने सराहा कि
‘कवि अपने दर्द को
कागज पर उकेरता है’
अपने खुशी भरें पलो को
अंलकारों और रसों से संवार कर
लेखनी की उन्मत् चाल से
शब्दों को वाक्यों में पिरोकर
कागज पर सहेजता है
वह जो समाज में देखता है
उसे ही ढ़ालकर आइने में
समाज को आईना दिखाता है
कवि अपने कल्पना रूपी पंखो से
लेखनी की थिरकन पर
वहाँ पहुँच जाता है

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

आज का भारत

है कहाँ-कहाँ न प्रगति हुई
चहुँ ओर प्रगति दिखलाई पड़े
अथाह-प्रगति के सागर में
अविराम प्रगति के खम्ब जडे

है लुटेरों का राज यहाँ
पग-पग फैला भ्रष्टाचार
अपराधों की प्रगति हो रही
हर दिन होता अत्याचार

कुछ वर्ष पूर्व हम जीते थे
व्यवस्थित मतवाली लहरों संग
है अस्त-व्यस्त जीवन अब तो
होती भोर अभावों संग

सब कुछ कागज पर होता है
सड़क नालियों का निर्माण
लूट-लूट सरकारी पैसा
रचते नित ’’भ्रष्टाचार-पुराण’’


गुलाम समय में ‘चालीस’ थे
आजादी में सौ आजाद हुए
अब अर्धशतक के पहले ही
एक सौ दस ‘आबाद’ हुए

सरेआम लुटती है अबला
जीवन की गूंजे चित्कार
निशदिन ऐसा फैल रहा है
मानवता पर अत्याचार

जनसंख्या में उन्नति जारी है
अवनति ने कदम बढ़ाये हैं
अभावों की भीषणता ने
पग-पग ध्वज फहराये हैं

फिर भी भाषण में होता है
प्रखर-प्रगति का ही गुणगान
पाश्चत्य सभ्यता में खोकर के
‘‘कहते मेरा भारत महान’’

नेता के भाषण-प्रवाह में
जन-मानस यूँ बह जाता है
मिथ्या वादों की गम्भीर मार से
सारे दुःख सह जाता है

भारत की सोयी जनता जागे
गद्दारों का हो प्रतिकार
तभी देश का भाग्य जगेगा
माँ-‘भारती’ का हो सत्कार

कहीं-कहीं पर अन्न नही है
कहीं-कहीं मिलता न पानी
कहीं-कहीं न घर रहने को
कहीं सदा तड़पी जिन्दगानी

शनिवार, 31 जुलाई 2010

ईश्वर

देखा है लोगो को
मन्दिर , मस्जिद ,गुरूद्वारे एवं गिरजाघर में
"ईश्वर"को खोजते हुए,
मन्नतों के लिए दर-दर भटकते हुए
वे जानते हैं कि "ईश्वर" वहाँ नहीं मिलेगा
’फिर व्यर्थ क्यों खोजते हैं तुष्टि के लिए’
एक यक्ष प्रश्न ने सिर उठाया
फिर ”ईश्वर“ कहाँ मिलेगा ’
सोचते-सोचते चिन्तन आगोश में खो गया
अचानक अन्र्तमन के पट पर
चलचित्र की तरह कुछ पात्र उभरे
मन ने माना कि ये ही ”ईश्वर“ के रूप हैं
माँ , किसान , डाक्टर ,
गिरते को उठाने वाला ,
मरते को बचाने वाला ,
सबकी प्यास बुझाने वाला ,
सबकी भूख मिटाने वाला ,
भटके को राह दिखाने वाला ,
बिछडे़ को मिलवाने वाला ,
गुणगान योग्य है ऐसा गुणवान
यही सुपात्र की नजर में ”भगवान“ है ।

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

लेखनी का साधक

तेरी रचनाओं के शायद ,मिल न पायें रोज पाठक
फिर भी तुझको “लेखनी” का ही, बना रहना है साधक
चाहे जैसा हो “ सिकन्दर ”है नहीं पल का ठिकाना
चाहें दुर्गम ही सफर हो , राह चलता नित्य चालक
तेरी रचनाओं के शायद ,मिल न पायें रोज पाठक
वृक्षारोपण के समय मन ,फल-ग्रहण का भाव लाते
अन्य सारे भाव तजकर ,वृक्षारोपण को न जाते
दूसरे को दे शीतलता , ग्रहण करते रहे पावक
तेरी रचनाओं के शायद ,मिल न पायें रोज पाठक
एक निंदा हो गयी क्या , “ लेखनी ” को रोक बैठा
थम गया स्वर सामने का , कोई श्रोता टोक बैठा
बुलन्द कर ले लेखनी को , निखार ले सुर-गंग-धारा
आज न हो पाया तेरा , कल “ भारती ” संसार सारा
राह दिखलाता चला जा , पथिक न कोई भटक पाये
मंजिलें उनको मिली हैं ,जो धार को हैं मोड़ पाये
प्यार बरसाता चला जा , प्यासा रहे न कोई “चातक”
तेरी रचनाओं के शायद ,मिल न पायें रोज पाठक

मंगलवार, 29 जून 2010

अंध विश्वाश और उसका प्रचार

आज धर्म के नाम पर कुछ धर्म के कथित ठेकेदार अन्धविसवासी प्रवृति को नये-नये कलेवर में बढ़ावा दे रहे हैं। परिणाम स्वरूप अंधविश्वास से ओत प्रोत व्यक्ति धर्म के कथित ठेकेदारों द्वारा प्रस्तुत घटनाओं अथवा कथनों पर स्व-विवेक से काम न लेकर सुझायी गयी बातों पर पूर्ण विश्वास कर लेते हैं। वे कथित सुझायी गयी बातों पर तनिक भी विचार नही करते कि उक्त के अनुपालन में उनका वांछित लाभ होगा अथवा नुकसान। वे तो बस अपने कथित ”गुरू अथवा महाराज “ की बातों से प्रभावित होकर श्वयम के द्वारा ही उत्पन्न की गयी मुसीबतों/ समस्याओं से बचने के लिए सुझाये गये रास्ते पर चल पड़ते हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास होता है कि उक्त सुझाये गये पथ पर ही उन्हें वाछित लाभ होगा अन्यथा उन्हें कठोर यातना सहनी होगी।
ऎसी ही प्रवृति से ग्रसित व्यक्ति की क्रिया कलापों के परिणाम स्वरूप मेरे घर के दरवाजे पर करीब 10-12 पर्चे ड़ाले गये जो दरवाजे पर नाली की तरफ बिखरे हुए पाये गये। कौतुहल वश मैंने उन्हें उठाकर पढ़ा। उक्त पर्चों पर मजमून कुछ इस प्रकार था तथा पर्चे के बीच में श्री सांई बाबा की तस्वीर भी छापी गयी थी।
सांई बाबा का अद्भुत चमत्कार
मद्रास शहर के पास सांई बाबा के मंदिर में एक भयानक दृष्य देखा गया, उस मंदिर मेें पुजारी पूजा कर रहा था । अचानक एक सर्प निकला उसे देखकर पुजारी डर गया। सर्प कन्या के रूप में आकर बोली डरने की कोई बात नही, जो कहती हूँ ध्यान से सुनो। मैं थोड़े दिन में पृथ्वी पर अवतार लूगीं जो धर्म का नास करते हैं उसका नास करूगीं। जो मेरे नाम का 100 पर्चे छपवाकर बांटेगा, 24 दिनों के अन्दर मेैं उसकी मनोकामना पूर्ण करूगीं,जो आज कल करके 24 दिन बितायेगा, उसका बड़ा नुकसान होगा।
इतना कहकर सर्प रूपी कन्या 2 फुट पीछे हटकर अन्र्तध्यान हो गयी। यह खबर सुनकर मुम्बई के एक आदमी ने 2000 पर्चे छपवाकर बांटे तो उसे 51 लाख रूपय की लाटरी निकली। धनबाद के एक रिक्षा चालक ने 6000 पर्चे बांटे तो उसे आठ दिन में हीरों से भरा कलष मिला। एक बेरोजगार लड़का पर्चे छपवाने की सोच रहा था कि उसकी नौकरी लग गयी । उसने 1000 पर्चा छपवाकर बांटा।
एक आदमी ने उसे झूठा समझकर फाड़ दिया तो उसका लड़का मर गया। आगरा के बाबू लाल गुप्ता को पर्चा मिला तो उसने सोचने में ही एक महीना बिता दिया, उसे ब्यापार में काफी नुकसान हुआ और उसकी पत्नी मर गयी। यह सुनकर बानतला गाँव के 5 भाईयों ने 1200 पर्चा बांटा तो एक घंटे के अन्दर 15 लाख की लाटरी मिली और उन्होने एक मंदिर बनवाने की सोची।
।। जय सांई बाबा की जय ।।
इस पर्चे को पढ़ने पर छापे गये तथ्यों के सार को इस प्रकार विश्लेशित किया जा सकता है। - क्या घटना का उल्लेख करने वाला व्यक्ति घटनाओं की पूरी जानकारी रखता है ?- क्या उसके द्वारा घटनाओं की सत्यता की पुश्टि की गयी है ? - जब उस सर्प कन्या द्वारा मात्र 100 पर्चे ही छपवाने पर मनोकामना पूर्ण करने का आष्वासन दिया गया था तो उल्लिखित व्यक्तियों ने क्रमशः 2000, 6000,1000 एवं 1200 पर्चे क्यों छपवाये ?
- पर्चे छपवाने वालों को क्रमशः 51 लाख रूपये की लाटरी, हीरों से भरा कलश, एक बेरोजगार को नौकरी तथा पांच भाईयों को 15 लाख रूपये की लाटरी का लाभ मिला। उक्त की पुष्टि क्या निवेदक द्वारा की गयी ?
- निवेदक को क्या लाभ मिला इसका उल्लेख क्यों नही किया गया ?
- पर्चा झूठा समझकर फाड़ने वाले का लड़का मर गया। क्या सांई बाबा इतने कठोर हृदय के हैं कि पर्चे न छपवाने पर वे किसी की जान भी ले सकते हैं ? जबकि मेरे संज्ञान के अनुसार श्री सांई बाबा बहुत ही उदार एवं सहज प्रवृति के तथा सर्व जन कल्याण की कामना रखने वाले सात्विक विचारों और सभी धर्माें को मानने वाले अवतारिक सख्शियत देव पुरूष थे, जो आज भी चमत्कारिक रूप से सर्व जन कल्याण कर रहे हैं। ऐसे पर्चे छपवाकर निवेदक समाज को क्या सन्देश देना चाहता है, यह पूर्णतयः स्पश्ट है। यह संदेश लोगों मेंअंधविश्वास फैलाकर जन सामान्य की धार्मिक आस्था को चोट पहुँचाकर उसे तनाव ग्रस्त करने का ही मंतव्य रखता है। पर्चे पर मुद्रक का नाम त्रिवेदी प्रिन्टर्स छपा है तथा मोबाइल नंबर भी दिया गया है-9889923509 । इस नंबर पर संपर्क करने पर कोई बात ही नही हो पाती है।

सोमवार, 21 जून 2010

पितृ दिवस पर विशेष

लाल मेरे माना तुझे जन्म न दिया
लेकिन तुझे मैंने अपना नाम दिया है
पाल पोश ‘माँ ‘ ने तुझे है बड़ा किया
हर कदम पर मैंने भी तो साथ दिया है
माना कि नौ माह, माँ ‘ का प्यार बड़ा है
मैंने भी खुद से ज्यादा तुझे प्यार किया है
अगुली पकड़ के माँ ने तुझे चलना सिखाया है
डगमगाये कदम तो मैंने थाम लिया है
मुसीबत में माँ ने तुझे अंक भर लिया
मैंने भी मुसीबत को नाकाम किया है।

शुक्रवार, 4 जून 2010

peryavaran प्रदूषण

पर्यावरण हमारे आस-पास तथा चारों ओर फैले ऐसे वातावरण का सूचक है जिसमें विभिन्न प्रकार के जैविक तथा अजैविक घटक शामिल हैं। यद्यपि पर्यावरण का संबन्ध जल में तथा थल पर बसने और जीवन यापन करने वाले हर प्राणी एवं जीव जन्तु से पूर्ण रूप से है किन्तु पर्यावरण का हमारे अर्थात मानव जीवन से गहरा एवं अटूट संबन्ध है, क्योंकि पर्यावरण के मुख्य घटक ही मानव जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक एवं अति अपेक्षित है। प्रकृति ने हमें जल,वायु,आकाश,प्रकाश,भूमि और वन सम्पदा तथा वनस्पति आदि विशुद्ध रूप से प्रदान किये हैं और इन समस्त अमृत-सम्पदाओं का समान वितरण भी बिना किसी भेदभाव के किया है। प्रकृति द्वारा यह प्रक्रिया ‘‘पर्यावरणीय सन्तुलन’’ बनाने के लिए अपनायी गयी है।
पर्यावरण को चार प्रमुख क्षेत्रों में बांटा गया है-पर्यावरण अभियान्त्रिकी, पर्यावरण स्वास्थ्य,श्रोतों का उपयोग और व्यवस्था प्रबन्ध तथा सामाजिक परिस्थितियां। आज पर्यावरण के इन समस्त क्षेत्रों में व्यापक प्रदूषण फैल चुका है तथा इसकी जडें़ निरन्तर गहरायी तक बढ़ती जा रही हैं। फलस्वरूप वर्तमान परिस्तिथियों में पूरा ब्रह्माण्ड़ षान्ति और आनन्द के बजाय अशांति और षोक के प्रांगण में अपना जीवन ब्याधि तथा तनाव में बिता रहा है। आज बढ़ती जनसंख्या का दुष्प्रभाव,औद्यौगिक क्रान्ति का उग्र रूप,प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग तथा मानवीय अदूरदर्शित पूर्ण कार्य-प्रवृति से जल,थल तथा वायु तत्वों के निरन्तर दोहन से ही आधुनिक पर्यावरण लगातार असन्तुलित तथा आन्दोलित होता जा रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण वैसे तो कई कारकों का सामूहिक प्रतिफल होता है तथा इसके भिन्न-भिन्न प्रकार पहचाने गये हैं। पर्यावरण प्रदूषण को अनेक रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे प्रदूषण का स्वरूप ,श्रोत ,साधन एवं अवस्थिति इत्यादि। व्यवहारिक रूप से पर्यावरण प्रदूषण को दो भागों में बाटा जा सकता है, प्रकृति जन्य तथा मानव जन्य । मानव जन्य प्रदूषण के अ्रन्तर्गत मानवीय गतिविधियाँ ,दूषित क्रियाकलापों का परिणाम जैसे कृषीय,औधोगिक ,तापीय प्रदूषण तथा सामाजिक अथवा सांस्कृतिक प्रदूषण आदि । प्रकृति जन्य प्रदूषण की श्रेणी में जल,स्थल तथा वायु प्रदूषण को शामिल किया जाता है।
सामान्य स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण को दो भागों में बांटा गया है-प्रत्यक्ष प्रदूषण और अप्रत्यक्ष प्रदूषण। प्रत्यक्ष प्रदूषण के अन्तर्गत औधोगिक चिमनियों, कल-कारखानों, परिवहन साधनों ,आवासीय भवनों तथा विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के जलाने से निकलने वाले धुएं को शामिल किया जाता है। आवासीय भवनों से निष्काषित मल,तथा अपशिष्ट पदार्थ कारखानों से निकलने वाले हानिकारक रासायनिक पदार्थ व प्रदूषित जल,ग्रामीण स्तर पर एकत्रित कूड़ा-करकट,रासायनिक खादें, मानव तथा पशु-पक्षियों का मल-मू़त्र तथा शवों को भी प्रत्यक्ष प्रदूषण की श्रेंणी में शामिल किया जाता है क्योंकि इन सभी का प्रभाव जीवमण्डल पर सीधे पड़ कर प्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचाता है।
अप्रत्यक्ष प्रदूषण एक ऐसा प्रदूषण है जो अपना प्रभाव जीवमण्डल पर सीधे न डाल कर अप्रत्यक्ष रूप से डालता है। अप्रत्यक्ष प्रदूषण में समस्त कीटनाशक पदार्थों , खरपतवार नाशकों, कवकनाशकों ,रेड़ियोधर्मी पदाथों अन्य प्रकार के विषैले रसायनों तथा मशीनों एवं परिवहन वाहनों का शोर आदि शामिल हैं। आधुनिक परिवेश में अपराध तथा भ्रष्टाचार से लिप्त सामाज विरोधी तत्वों के आचरण और कृत्यों को सामाजिक प्रदूषण की अप्रत्यक्ष श्रेणी में लिया गया है।
प्रदूषण के कारण जल में भारी मात्रा में मौजूद भारी धातुएं, फलोराइड ,कीट नाशी रसायनों, नाइट्रेट,आर्सेनिक तथा दूसरे कार्बनिक यौगिक मिल जाते हैं। ऐसे जल के गहण करने से जीवमण्डल पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव पड़ता है। प्रदूशित जल में जीवाणुओं तथा प्रोटोजोआ के कारण मानव जीवन अतिसार पेचिश,हैजा तथा अन्य प्रकार की वाइरस युक्त गम्भीर शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। वैसे तो प्रकृति द्वारा वातावरण को शुद्ध रखने के लिए जंगलों एवं अन्य वनस्पतियों की रचना की गयी किन्तु आवासीय समस्याओं के निदान हेतु निरन्तर जंगलों का कटान तथा औद्यौगिक क्रान्ति के कारण बढ़ते कारखानों से उत्सर्जित धुएं के साथ विभिन्न प्रकार की गैसें वायुमण्डल में मिल कर वायु को विषयुक्तकर रहीं हैं। परिणामस्वरूप वायुमण्डल में जैविक, भौतिक तथा रासायनिक गुणों में भयंकर रूप से अवांक्षित बदलाव आने लगा है। ऐसे अनवरत बदलाव से जीवमण्डल के साथ-साथ जैवमण्डल भी प्रभावित हुआ है। वायु प्रदूषण से वनस्पतियों ,पशु-पक्षियों तथा मानव जीवन पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। वायु प्रदूषण के भयंकर प्रभाव से विश्व की बड़ी-बड़ी इमारतें तथा जलाशय तक अछूते नही रहे। क्लोरोफलोरो-कार्बनिक युक्त वायु ओजोन परत को निरन्तर क्षतिग्रस्त कर रही है। कभी-कभी वायु प्रदूषण का विध्वसंक प्रकोप अम्ल वर्षाका रूप धारण कर लेता है।
प्रकृति के अमूल्य अंश मिट्टी को जीवंतता की श्रेणी में लिया जाता है क्योंकि यह निर्जीव नही है। मिट्टी में असंख्य सूक्ष्म जीवों का वास होता है जो अपनी सामथ्र्यता के अनुसार मिट्टी में शामिल होने वाले समस्त अपशिष्ट पदार्थों का चक्रिय अपघटन करके व्याप्त प्रदूषण को कम करते हुए मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते रहते हैं, किन्तु जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के कारण मिट्टी में भी प्रदूषण फैलता जा रहा है। मिट्टी मे फैले प्रदूषण को मृदा प्रदूषण की संज्ञा दी गयी है। मृदा प्रदूषण के कारण मिट्टी मृत हो जाती है जिसे बंजर भूमि भी कहा जा सकता है। मृदा प्रदूषण से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बहुत ही कमजोर हो जाती है।
आधुनिक औद्यौगिक प्रक्रियाओं में उत्पादन तथा संचयन हेतु जल का उपयोग शीतलन कूलिंग के रूप में किया जाता है । शीतलन के कारण यह जल उश्मायुक्त होकर अत्यधिक गर्म रूप धारण कर लेता है और तालाब, नदी तथा समुद्र में फैलकर जालतंत्र के ताप को बिकराल रूप में बढ़ा देता है । परिणामस्वरूप जल के सामान्य ताप में अवांक्षनीय वृद्धि होने के कारण जलीय वनस्पतियों तथा जीव-जन्तुओं की जैविक क्रियाएँ बुरी तरह प्रभावित हो जाती हैं। इस प्रकार के तापीय प्रदूषण के कारण बाढ़,सूखा,तथा अकाल जैसे प्राकृतिक प्रकोपों में बढ़ोतरी होती है। समुद्री जल-स्तर में निरन्तर वृद्धि हो सकती है तथा ताप के निरन्तर प्रभाव से हिमनद पिघल सकते हैं जिससे जीव तथा धन सम्पदा को अपार क्षति पहुँच सकती है। तापीय प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन की संभावनायें काफी बढ़ जाती है जिससे कृषि उत्पादन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है।
ध्वनि हवा के माध्यम से तरंगों के रूप में निरन्तर चलायमान रहती है इसकी मन्द गति तो कर्ण-प्रिय होती है किन्तु ध्वनि की तीव्र कम्पन्नता हमारे स्वास्थ्य को हानिकारक रूप से प्रभावित करती है। ध्वनि तीव्रता की मानक इकाई ‘‘डेसीबल’’ होती है। प्रकृति ने मानवीय कर्ण के लिए ध्वनि सुगमतापूर्वक ग्रहण करने की एक निश्चित सीमा निर्धारित की है। इस निर्धारित सीमा से अधिक तीव्र ध्वनि को शोर की संज्ञा दी जाती है। ऐसी ध्वनि का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सामान्य तौर पर 120 डेसीबल तक की ध्वनि तीव्रता मानव कानों द्वारा सहन की जा सकती है, किन्तु इससे तेज आवाज कष्टप्रद हो जाती है। यह ध्वनि तीव्रता मानवीय स्नायु तन्त्र को प्रभावित करके अनिद्रा ,बहरापन तथा रक्तचाप इत्यादि रोगों से ग्रसित कर देती है। स्नायुविक रोगों से ग्रस्त होने के कारण मानसिक मन्दता संबन्धी प्रक्रिया को भी बढ़ावा मिलता है।
कभी भारत सोने की चिड़िया और स्वर्ग का धरातल कहलाने वाला तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड़ में आन्नद और shaanti का स्थल था, किन्तु आज सषक्त प्रदूषण के कारण जल, थल और नभ का हर प्राणी shook एवं अषान्ति में जीवन व्यतीत कर रहा है। आज मानव अपने कर्मो में सुधार न लाकर प्रदूषण के कुप्रभावों से ग्रसित होकर एक दूसरे को doshi ठहरा रहा है या फिर उसे ‘‘दैवीय प्रकोप’’ मान कर अपनी सहन क्षमता स्वतः ही बढ़ाता जा रहा है।
आज पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने के लिए कई संस्थायें आगे आयी है। पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने के उद्देष्य से प्रत्येक Varsh माह जून की पांच तारीख को पूरे संसार में ‘‘विश्व पर्यावरण दिवस’’ मनाया जाता है। इस तारीख को विष्व के समस्त desh पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण shikchhaa संबन्धी कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। ये आयोजन pradarshaniyon ,नुक्कड़ नाटकों,पद यात्राओं ,जन सभाओं,सेमिनारों लोक नृत्यों आदि के रूप में किये जाते हैं। विद्यालय स्तर पर छात्रों के लिए पोस्टर प्रतियोगिताएं/चित्रकला/वाद-विवाद/निबन्ध प्रतियोगिताएं तथा सकारात्मक प्रायोगिक कार्यषालाओं का भी आयोजन किया जाता है। भारत सरकार के वन तथा पर्यावरण मन्त्रालय के अन्र्तगत स्वतन्त्र रूप से कार्यरत पर्यावरण विभाग द्वारा विभिन्न puraskaaron का भी प्राविधान रखा गया है ,ताकि उक्त आयोजनों एवं पुरस्कारों से षिक्षा लेकर एवं सुपरिणामों से प्रेरित होकर समाज पर्यावरण के प्रति सजग रहे और ब्रह्माण्ड़ में फैलते प्रदूषण को उत्तरोतर रूप से घटाने में अपना अमूल्य सहयोग दे सके , फलस्वरूप समाज समस्त pradooshanon से मुक्त होकर स्वस्थ रूप धारण कर एक सषक्त एव जन कल्याणकारी वातावरण में जीवन व्यतीत करता हुआ स्वस्थ पर्यावरणीय समाज की संज्ञा से नवाजा जा सके।

शुक्रवार, 21 मई 2010

दलित उत्थान ओंर मायावती

शास्त्रों के अनुसार महिलाओं और शूद्रों को समान अधिकार प्राप्त थे जहाँ शूद्रों से धार्मिक पूजा पाठ सम्बन्धी कार्यों की अपेक्षा नहीं की जाती थी उसी प्रकार महिलाओं को शिक्षा ग्रहण का अधिकार प्राप्त नहीं था। महिलाओं को कुविचारी, स्तैण, दुष्ट और चंचल माना जाता था। ऐसी मान्यता थी कि यदि कोई स्त्री शिक्षा ग्रहण करती है तो उसे बंध्यता का शिकार होना पड़ेगा। वह पति के घर वालों की इज्जत नहीं करेगी और वह जिद्दी स्वभाव की हो जायेगी। समाज में उसके बोलने पर भी प्रतिबन्ध था। यदि कोई परिवार उसकी बुद्धि के अनुसार चलेगा तो उस परिवार का विनाश हो जायेगा। शास्त्रों में वर्णित पूर्व समाज के अनुसार स्त्री मात्र ‘परायी अबला‘ थी उसे अपने पूरे जीवन भर माता-पिता, भाई, पति और उसके परिवार वालों के ही अधीन अपना जीवन गुजारना पड़ता था यहाँ तक उसके पैरों में चप्पल अथवा जूता पहनना भी अशुभ माना जाता था। समाज में स्त्री दोष और अज्ञानता का भण्डार मानी जाती थी। पूर्व समाज के अनुसार स्त्री को शिक्षित करना बन्दर के हाथ में उस्तरा देने के बराबर माना जाता था।
परन्तु ऐसे ही समाज में जन्मी और पली-बढ़ी एक ऐसी महिला जिसने शास्त्रों में वर्णित स्त्री से सम्बन्धित समस्त कुरीतियों की वर्जनाओं को नकारते हुए क्रूर समाज के सभी दुष्कृत्यों और आलोचनाओं का विरोध करने और उससे उत्पन्न पीड़ा को सहन करते हुए एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया जिसे आज के महिला समाज ही नहीं वरन् विश्व के सभी वर्गों द्वारा सराहा जा रहा है। आज उन्हें ‘‘लौह-महिला‘‘ के विशेषण से भी सम्बोधित किया जाता है। हर दलित महिला के दिल पर जिनका एक क्षत्र राज है जिन्हे आम जन बहन मायावती एवं दलितों की देवी के नाम से जानते हैं। भले ही उन्हें कई महिलाओं ने प्रत्यक्ष रूप से न देखा हो परन्तु वे उनकी छवि को आत्मसात करने का प्रयास करती हैं और उनके संघर्षमय जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन के उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं।
सुश्री मायावती जी ने ‘बहुजन हिताय‘ को ध्यान में रखते हुए उनके कल्याण के लिए भीमराव अम्बेडकर द्वारा चलाये गये अभियान को भली-भाँति निरंतर आगे बढ़ाने हेतु उत्तरोत्तर एवं सफल प्रयास किया। उनके ही सफल प्रयासों के द्वारा आज दलित खुलकर एवं स्वतंत्रता पूर्वक सवर्णों तथा मनुवादियों के क्रूर चंगुल से मुक्ति पाकर, निर्वाध रुप से जीवन यापन कर रहा है। सुश्री मायावती जी के स्त्री शिक्षा एवं महिला आरक्षण पर अधिक जोर देने के कारण ही आज ‘’महिला साक्षरता‘’ तथा ’’नारी सशक्तीकरण’’ प्रतिशत में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में उनकी निर्भीकता और अदम्य साहस से परिपूर्ण प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की प्रेरणा लेकर आज दलित समुदाय अपनी बात खुलकर प्रस्तुत करते हुए एक नये रूप में अपनी प्रतिभा को निखार कर समाज में प्रस्तुत कर पा रहा है और निरंतर अपना नैतिक स्तर ऊँचा उठाते हुए अपने रहन-सहन में सुधार लाने में कामयाब हो रहा है अर्थात् दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि दलित समुदाय की स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति, नैतिक उन्नति तथा रहन-सहन में सुधार संबन्धी अन्य क्रिया-कलापों में उत्तरोत्तर प्रगति का श्रेय सुश्री मायावती जी को ही जाता है। उन्हें एक ऐसे समाज की जननी कहा जा सकता है जिसके समुचित एवं सुव्यवस्थित निर्माण हेतु उन्होंने अपना पारिवारिक जीवन ही त्याग दिया।
प्राचीन सामाजिक परिवेश की दासता से दलित समुदाय को मुक्त कराने हेतु जो आन्दोलन उनके द्वारा चलाया गया उसमें उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। आज दलित गण अधिकार सहित जो भी सुख-सुविधायें प्राप्त कर रहे हैं, अच्छा वेतन प्राप्त कर रहे हैं, अच्छे एवं ऊँचे पदों पर पहुँच रहे हैं एवं अच्छी जिन्दगी बसर कर रहे हैं। इन समस्त सुख-सुविधाओं की नीव में जहाँ भीमराव अम्बेडकर तथा अन्य महापुरूषों की कुर्बानियां, उनके द्वारा किये गये संघर्ष तथा त्याग की भावना समाहित है वहीं पर अम्बेडकर जी द्वारा चलाये गये आन्दोलनों को भली-भाँति आगे बढ़ाने में सुश्री मायावती जी के पूर्ण एवं सफल योगदान को किंचित मात्र भी नकारा नहीं जा सकता।
शास्त्रों में भी महापुरुषों द्वारा कहा गया है कि ‘‘नारी उन सप्त रत्नों मे सर्व श्रेष्ठ है जो किसी को भी चक्रवर्ती अर्थात विश्व सम्राट बना सकती है। जिस देश अथवा परिवार का समाज एवं व्यक्ति नारी को सम्मान नहीं देता, उसे देय स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता और उसे किसी भी प्रकार का दुःख पहुँचाता है तो उस समाज अथवा व्यक्ति का विनाश निश्चित होता है।‘‘ परन्तु हमारा समाज शास्त्रों को ही मानता है, उनकी पूजा करता है, उसमें लिखी बातों को शुभ अवसरों पर प्रवचन तथा अन्य रुपों में श्रवण करता है। फिर भी कभी-कभी निजी स्वार्थों में लिप्त होकर मात्र तुच्छ लाभ के लिए शास्त्रों में वर्णित सद्वचनों को आत्मसात करने के बजाय उन्हे समूल नकार देता है। कुछ साल पहले घटी उस घटना को याद करके बड़ा आश्चर्य होता है कि हिन्दू परम्पराओं पर आधारित जीवन यापन करने वाले समाज के कुछ बुद्धिजीवी राजनीतिक एवं भ्रष्ट तत्वों द्वारा विधान सभा के अन्दर सुश्री मायावती जी की प्रतिष्ठा को नष्ट करने का असफल प्रयास करने का दुःसाहस किया गया और उनकी जान लेने की कोशिश की गयी। उक्त घटना की राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर घोर निन्दा की गयी।
यहाँ यह भी सराहनीय है कि सुश्री मायावती जी ने अपने शासन काल में लोक कल्याण संबंधी कई योजनाएं चलायीं फलस्वरूप प्रदेश प्रगति की ओर निरन्तर बढ़ता गया। उनके शासन काल में कानून व्यवस्था पूर्णतयः प्रजातन्त्र पर आधारित एवं प्रजा को संतुष्ट करने वाली रही तथा दंगों एवं भ्रष्टाचार का ग्राफ घटता गया। उनके पूर्व शासनकाल की एक घटना आज भी याद आती है जब राजधानी के किसी व्यवसायी के पुत्र का अपहरण हो गया था और विपक्षी दलों के दबाव के कारण उसकी खोजबीन में लापरवाही बरती जा रही थी तब सुश्री मायावती जी का एक ही ‘‘आदेश‘‘ जो उन्होंने पुलिस तन्त्र को दिया और उसके अनुपालन में अपृहत बच्चे की बरामदगी मात्र कुछ ही घण्टों में हो गयी अर्थात यह कहा जा सकता है कि उनके शासन काल में सामाजिक सुरक्षा प्रणाली अत्यधिक व्यवस्थित तथा ठोस रुप से लागू रही। समाज की उन्नति एवं रक्षा के लिए उन्होंने हर सम्भव प्रयास किया।
माननीय श्री कांशीराम के बाद बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार सम्भालते हुए उन्होंने प्रतिक्षण दलित समुदाय के हितों के लिए अपना पूर्ण योगदान दिया है। अपने इस अनूठे योगदान के कारण ही आज भी वे सत्ता में है। विपक्षी पार्टियों के घोर विरोध के बावजूद सत्ता में रहते हुए आज भी वे निरंतर लोकहित की बात उठाया करती हैं। उनकी नजर में ’’दलित’’ वह है जो समाज में दबा कुचला हुआ है जो कथित दबंगों द्वारा दासता में जकड़ा हुआ तथा कमजोर एवं शोषित है चाहे वह किसी भी जाति एवं वर्ग का क्यों न हो उसे वह दलित समुदाय का अंश मानती हैं और उन्होंने संकल्प लिया है कि इस वर्ग को सबल बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है ताकि यह वर्ग भी समाज में अपना आस्तित्व बनाये रखने में सक्षम हो और देश की सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक उन्नति में सहभागी हो, अर्थात यह कहा जा सकता है कि दलित समुदाय के हितों एवं अधिकारों की रक्षा करना ही उनका नैतिक एवं मौलिक दायित्व है।

शनिवार, 8 मई 2010

मातृत्व-दिवस पर विशेष



माँ


मेरी प्राणों से प्यारी माँ


तेरी विनती करता हूँ


मझधार में भटका हूँ


मुझे छोड़ न जाना तू


मेरी प्राणों..............




तेरा हाथ रहे सर पे


मेरा ‘जीवन’ उठ बैठे


मझधार में प्राण फंसे


मुझे पार लगाना तू


मेरी प्राणों.......




जब भी लडखडाये कदम


तुने थामा है तन मेरा
जब -जब हुआ मन मैला


तुने धोया है मन मेरा




तू दुर्गुण -नशनी है


तुझे शत-शत जपता हूँ ।


मेरी प्राणों से प्यारी तेरी


विनती करता हूँ
मझाधार में भटका हूँ


मुझे छोड़ न जाना तू

माँ - मात्रत्व दिवस पर विशेष



मेरी-माँ
माँ वह शब्द ,
जो मेरे मुह से पहली बार निकला
माँ वह वजूद जो मेरे साथ
हर कदम पर रही

माँ वह देवी ,
जिसकी वात्सल्य -छावं में ,
मै पला ,संवरा और आगे बढ़ा

माँ वह शक्ति जिसने मुझे
हर नजर और हर बला से बचाया
माँ वह अद्भुत शक्ति ,
जिस मैंने अपने लिए
हर जगह मह्सूश किया

माँ वह रछक जिसे मैंने ,
हमेशा अपने लिए ही पाया
माँ वह शिछ्क जिसने मुझे
पहला पाठ पढाया

माँ वह सच्ची , पथप्रदर्शक
जिसने मुझे हर राह बताई
जिसने मुझे हर युक्ति सुझाई

माँ वह सलाहकार ,
जिसने मुझे सच्चे दोस्त की तरह
हमेशा सच्ची तथा निःशुल्क सलाह देकर
जीवन के हर मोड़ पर जीवित रहने हेतु
सामर्थ्यता का वरदान दिया





शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

सरहद पैर

दो आतंकी ढेर
दो जवान शहीद
कुल मिला कर
चार घरों में अँधेरा
दो इधर
तो दो घर उधर
जरी है अभी सिलसिला
सरहदों पर
..आमीन..
प्रस्तुतकर्ता संजय भास्कर पर

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

डाकिया

तन पर झोला , मन है भोला
घूम रहा है गली - गली
आओ अपनी चिठ्ठी ले लो
हर द्वार-द्वार पुकार चली

मीठे -मीठे श्वर को सुनकर
मुरझाये चेहरे खिल जाते
यादों में है जिन्हें बसाया
पत्रों में आकर मिल जाते

वर्षा हो या जेष्ठ दुपहरी
तूफां हो या शीत हो गहरी
हर मौसम में नित-दिन आता
बन करके "हर दिल" का प्रहरी

सबसे उसका प्रेम का नाता
नित-दिन नयें संदेशे लाता
हर सुख-दुःख का वह भागी है
हर "दिल" उसका अनुरागी है

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

बाबा अम्बेडकर की जयंती पर नमन

***आज संविधान-निर्माता बाबा अम्बेडकर जी की जयंती पर शत-शत नमन ***

शुक्रवार, 26 मार्च 2010


शहीद दिवस के अवसर पर
विशेजिस पर अपना सर्वस्व लुटाया, जिसके खातिर प्राण दिए थे।
वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥
आँख सजल तुम्हारी होती, प्राणों में कटु विष घुल जाता।
पीड़ित जनता की दशा देखकर, ह्रदय विकल व्यथित हो जाता ॥
जहाँ देश के कर्णधार ही, लाशों पर रोटियाँ सेकते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
तुम जैसे वीर सपूतों ने, निज रक्त से जिसको सींचा था।
यह देश तुम्हारे लिए स्वर्ग से सुन्दर एक बगीचा था॥
अपनी आँखों के समक्ष, तुम कैसे जलता इसे देखते ।
वीर भगत सिंह आज अगर........
जिस स्वाधीन देश का तुमने, देखा था सुन्दर सपना।
फांसी के फंदे को चूमा था, करने को साकार कल्पना॥
उसी स्वतन्त्र देश के वासी, आज न्याय की भीख मांगते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
अपराधी, भ्रष्टों के आगे, असहाय दिख रहा न्यायतंत्र।
धनपशु, दबंगों के समक्ष, दम तोड़ रहा है लोकतंत्र।
जहाँ देश के रखवालों से, प्राण बचाते लोग घुमते॥
वीर भगत सिंह आज अगर........
साम्राज्यवाद का सिंहासन, भुजबल से तोड़ गिराया ठादेश के
नव युवकों को तुमने, मुक्ति मार्ग दिखाया था॥
जो दीप जलाये थे तुमने, अन्याय की आंधी से बुझते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
जिधर देखिये उधर आज, हिंसा अपहरण घोटाला है।
अन्याय से पीड़ित जनता, भ्रष्टाचार का बोल बाला है॥
लुट रही अस्मिता चौराहे पर, भीष्म पितामह खड़े देखते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
साम्राज्यवाद के प्रतिनिधि बनकर, देश लुटेरे लूट रहे।
बंधुता, एकता, देश प्रेम के बंधन दिन-दिन टूट रहे॥
जनता के सेवक जनता का ही, आज यहाँ पर रक्त चूसते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
बंधू! आज दुर्गन्ध आ रही, सत्ता के गलियारों से।
विधान सभाएं, संसद शोभित अपराधी हत्यारों से।
आज विदेशी नहीं, स्वदेशी ही जनता को यहाँ लूटते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
पूँजीपतियों नेताओं का अब, सत्ता में गठजोड़ यहाँ।
किसके साथ माफिया कितने, लगा हुआ है होड़ यहाँ ॥
अत्याचारी अन्यायी, निर्बल जनता की खाल नोचते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
शहरों, गाँवों की गलियों में, चीखें आज सुनाई देती।
अमिट लकीरें चिंता की, माथों पर साफ़ दिखाई देती॥
घुट-घुट कर मरती अबलाओं के, प्रतिदिन यहाँ चिता जलते।
वीर भगत सिंह आज अगर........
घायल राम, मूर्छित लक्ष्मण, रावण रण में हुंकार रहा।
कंस कृष्ण को, पांडवों को, दुःशासन ललकार रहा॥
जनरल डायर के वंशज, आतंक मचाते यहाँ घूमते।
वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥

-मोहम्मद जमील शास्त्री( सलाहकार लोकसंघर्ष पत्रिका )शहीद दिवस के अवसर पर भगत सिंह, राजगुरु व सहदेव को लोकसंघर्ष परिवार का शत्-शत् नमन
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सोमवार, 22 मार्च 2010


जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहो

जिंदगी एक रात है ,
जिसमे न जाने कितने खवाब है
जो मिल गया वो अपना है ,
जो टूट गया वो सपना है
ये मत सोचो की जिंदगी में कितने पल है ,
ये सोचो की हर पल में कितनी जिंदगी है
तो हर पल जिंदगी हंस कर जियो ,
हर पल को जी भर के जियो
हस्ते रहो मुस्कुराते रहो
प्रस्तुतकर्ता संजय भास्कर पर

शनिवार, 20 मार्च 2010

गरीब की लड़की

सामाजिक दहलीज पर
अपने घर के कोने कि तरह
रह -रह कर ठिठक जाती है
अक गरीब की लड़की
उसी समाज में जहाँ
कम एवं छोटे वश्त्र पहनना
नित्य नया फैशन माना जाता है
वहीँ गरीब की लड़की
अपने फटे वस्त्रों में
अपनी लाज छुपाने के लिए
बार-बार सिमट जाती है
उसे महसूस होती है
उन निगाहों की चुभन
जो बेह्याही स झांकती हैं
सूछम छिद्रों स उसका तन
और वह पी जाती है पीड़ा
मसोस कर अपना मन

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित राज्यों का पुनर्गठन
भारत विविधताओं वाला देश है जहां विभिन्न धर्म, जाति भाषा एवं विचारधारा वाले लोग निवास करते हैं। इस प्रकार की विभिन्न विचारधारा वाले लोगों को एक साथ खड़ा करके भावी आदर्शों एवं मूल्यों पर एकमत करना एक कठिन कार्य ही नहीं अपितु असम्भव कार्य भी है। ऐसे माहौल में राज्यों का पुनर्गठन एक जटिल समस्या है। फिर भी कुछ प्रान्तों में तेलंगाना, हरित प्रदेश, बुन्देलखण्ड़, गोरखालैण्ड़ एवं विदर्भ इत्यादि के नामों से राज्यों के पुनर्गठन की मांग उठना विकास की किस उत्तरोत्तर प्रगति को प्रदशर््िात करता है? इस प्रश्न पर देश के कर्णधारों का मौन रूप स्वतः ही इसके जटिल परिणामों को प्रतिबिम्बित करता है। देश में पहली बार वर्ष 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ था तथा उक्त प्र्रक्रिया अनवरत चलती रही और भारत देश खण्ड़ो में बंटता चला गया। भारतीय संविधान के रचियता डाॅ0 भीमराव अम्बेड़कर ने वर्ष 1956 में प्रकाशित उनके एक निबन्ध ‘‘थाट्स आन लिग्विस्टिक स्टेट्स’’ में सशक्त एवं प्रभावशाली शासन को आधार बनाकर राज्यों के पुनर्गठन की युक्ति का सुझाव दिया था। इस निबन्ध में डाॅ0 भीमराव अम्बेड़कर ने दक्षिणी और उत्तरी राज्यों की क्षेत्रफलीय असमानता को दृष्टिगत रखते हुए छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना को मंजूरी दी थी। उदाहरणस्वरूप उन्होंने उत्तर प्रदेश को तीन बराबर-बराबर भागों जैसे मध्य उत्तर प्रदेश, पश्चिमी प्रदेश एवं पूर्वी प्रदेश के रूप में बांटने का प्रस्ताव किया। उक्त बँटवारे में उन्होंने आबादी और क्षे़त्रफल को पूरा महत्व दिया था । प्रस्तावित राज्यों के प्रमुख शहरों कानपुर, मेरठ और इलाहाबाद को राज्यों की राजधानी बनाने का भी सुझाव दिया था। किन्तु डाॅ0 भीमराव अम्बेड़कर के उक्त विचारों पर अमल करने के बजाय कुछ राज्यों के कर्णधारों ने तत्कालीन सरकार को भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन हेतु विवश कर दिया था। इस प्रकार की आवाजें अभी भी रह-रहकर उठती रहती हैं। दुर्भाग्यवश अब लगभग अर्धशतक के पश्चात कुछ राजनीतिक हस्तियों द्वारा निजी स्वार्थों से ओत प्रोत पूर्व में की गयी गलतियों को उदाहरण स्वरूप पस्तुत करके पुनः नये राज्यों के पुनर्गठन की मांग की जा रही है, जिसे कि उचित ठहराना वर्तमान परिस्थितियों में जायज नहीं लगता। तेलंगाना राज्य के अलगाव आन्दोलन के साथ ही कुछ अन्य छोटे राज्यों के पुनर्गठन की निरथर््ाक मागें भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसी मांगें कई बार हिंसक रूप धारण कर लेती हैं, जो देश की एकता व अखण्डता तथा साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए घातक सिद्ध होती हंै। वोट बैंक एवं क्षेत्रवार की राजनीति के चलते राजनैतिक कर्णधार भी ऐसी बातों को हवा देते हैं जो कि देश के लिए घातक हैं। वस्तुतः हमारे देश के राष्ट्र निर्मताओं एवं सच्चे सपूतों ने भारत देश की उत्तरोत्तर प्रगति हेतु जो सकरात्मक कल्पना की थी उसमें भी लोकतन्त्र की नयी क्रान्ति के माध्यम से नये सशक्त समाज की स्थापना, राष्ट्र को अटल एवं मजबूत शक्ति के रूप में उभारना, राष्ट्र की एकता व अखड़ता तथा साम्प्रदायिक सद्भावना को अधिक से अधिक मजबूती प्रदानकरना एवं राष्ट्र की‘‘एकता, लोकतन्त्र और आर्थिक व सामाजिक आदर्शों के मूल्यों को बढ़ावा देना जैसे तत्व शामिल थे, किन्तु इसके विपरीत राज्यों का आधुनिक पुनर्गठन देश की ‘‘ एकता ,लोकतन्त्र और आर्थिक तथा सामाजिक आदर्शो’’ को आघात पहुँचाता है। इन तत्वों का सामूहिक एवं सशक्त संगम भारत को विकसित , सम्पन्न एवं समृद्ध देश की श्रेणी में स्थान दिलाता है। किन्तु राज्यों के पुनर्गठन की ऐसी घटनाओं को देखकर यह प्रतीत होता है कि देशों के कुछ कथित राजनेताओं ने अपनी राजनीतिक महत्वाकाक्षांओं की छद्म पूर्ति हेतु स्वतन्त्रता,समानता एवं आपसी भाईचारे की भावना के साथ-साथ आर्थिक राजनीतिक तथा सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों को तिलांजलि दे दी है। ऐसे में यह अति आवश्यक हो गया है कि राष्ट्र की एकता तथा अखण्ड़ता को सदैव स्थिर रखने के लिये आज की युवा पीढ़ी को भारतीय संविधान में निहित समस्त तत्वों की सम्यक जानकारी देनी चाहिए और उनके सुचारू रूप से अनुपालन करने तथा कराने का मौलिक दायित्व भी सौंपना चाहिए, आखिर वे ही राज्य के कर्णधार हैं।

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

मंहगाई

मंहगाई की मार से
केन्द्र हुआ लाचार
झटपट काबू पाने के
होने लगे विचार
होने लगे विचार
खाद्यान आयात करेंगें
गेहूँ, चावल, दलहन से
भण्डार भरेंगें
निजी फ्लोर मिलों के द्वारा
करेंगें हम आयात
बहु भण्डार भरेंगें अपने
होगा राशन पर्याप्त
होगा राशन पर्याप्त
न कोई भूखा सोये
करें थोड़ा सा सहन
न कोई आपा खोये
मंहगाई की मार से
जन जीवन है त्रस्त
एयर कंडीशन बैठक में
सब मंत्री है मस्त
सब मंत्री हैं मस्त
‘रमई’ का छिना निवाला
मंहगाई की धुंध में
निकल गया है दिवाला
मंहगाई बढ़ती गयी,
कम न हुई मिलावट
कीमत चढ़ती ही गयी
मानक में हुई गिरावट

2

मानक में हुई गिरावट
सभी का सपना टूटा
सत्ता लोलुप लोगों ने
निर्धन को लूटा
कल्लू की पहँच से
अब बैंगन है दूर
जीवन जिनके बिन न चले
उनकी कीमत हमसे दूर
कल्लू ने है त्याग दिया
लेना बैंगन का भर्ता
लल्लू ने भी छोड़ दिया
अब पहनना कुर्ता
मंहगाई की मार से
निकला सबका तेल
नित्य नया हो रहा
मंहगाई का खेल !!

गुजरती Pidiyan

जाने क्यों लोग ऐसा करते हैं
जिनको कहते हैं अपना
नित्य प्रति उन्हीं को दुख पहुँचाते है
वे जानते है कि जो,
आज हुआ है प्रचलित
वही भविष्य के जगमगाहट में
हो जायेगे विस्मृत
फिर भी न जाने क्यों
दोहराते है इतिहास
और कल के आगोश में
बन जाते है परिहास
घोर आश्चर्य है कि
करते हैं उपेक्षा उनकी
मात्र दो रोटी और कुछ बुंदे
भूख-प्यास है जिनकी
जिन्होंने चार-पाँच को,
अकेले है पाला
वही उन्हे नही दे पा रहे है
मात्र दो कौर निवाला
अब तो वे न आ रहे
है ‘‘बूँदो’’ के काम
जिनके लालन-पालन में
नहीं किया विश्राम
यहाँ सभी को याद है
‘‘श्री गीता’’ का ज्ञान
कर्मो के आधार पर
फल देता भगवान
फिर भी इस संदेश को
है जाते वे भूल