मंगलवार, 12 जनवरी 2010

मंहगाई

मंहगाई की मार से
केन्द्र हुआ लाचार
झटपट काबू पाने के
होने लगे विचार
होने लगे विचार
खाद्यान आयात करेंगें
गेहूँ, चावल, दलहन से
भण्डार भरेंगें
निजी फ्लोर मिलों के द्वारा
करेंगें हम आयात
बहु भण्डार भरेंगें अपने
होगा राशन पर्याप्त
होगा राशन पर्याप्त
न कोई भूखा सोये
करें थोड़ा सा सहन
न कोई आपा खोये
मंहगाई की मार से
जन जीवन है त्रस्त
एयर कंडीशन बैठक में
सब मंत्री है मस्त
सब मंत्री हैं मस्त
‘रमई’ का छिना निवाला
मंहगाई की धुंध में
निकल गया है दिवाला
मंहगाई बढ़ती गयी,
कम न हुई मिलावट
कीमत चढ़ती ही गयी
मानक में हुई गिरावट

2

मानक में हुई गिरावट
सभी का सपना टूटा
सत्ता लोलुप लोगों ने
निर्धन को लूटा
कल्लू की पहँच से
अब बैंगन है दूर
जीवन जिनके बिन न चले
उनकी कीमत हमसे दूर
कल्लू ने है त्याग दिया
लेना बैंगन का भर्ता
लल्लू ने भी छोड़ दिया
अब पहनना कुर्ता
मंहगाई की मार से
निकला सबका तेल
नित्य नया हो रहा
मंहगाई का खेल !!

गुजरती Pidiyan

जाने क्यों लोग ऐसा करते हैं
जिनको कहते हैं अपना
नित्य प्रति उन्हीं को दुख पहुँचाते है
वे जानते है कि जो,
आज हुआ है प्रचलित
वही भविष्य के जगमगाहट में
हो जायेगे विस्मृत
फिर भी न जाने क्यों
दोहराते है इतिहास
और कल के आगोश में
बन जाते है परिहास
घोर आश्चर्य है कि
करते हैं उपेक्षा उनकी
मात्र दो रोटी और कुछ बुंदे
भूख-प्यास है जिनकी
जिन्होंने चार-पाँच को,
अकेले है पाला
वही उन्हे नही दे पा रहे है
मात्र दो कौर निवाला
अब तो वे न आ रहे
है ‘‘बूँदो’’ के काम
जिनके लालन-पालन में
नहीं किया विश्राम
यहाँ सभी को याद है
‘‘श्री गीता’’ का ज्ञान
कर्मो के आधार पर
फल देता भगवान
फिर भी इस संदेश को
है जाते वे भूल