बुधवार, 9 सितंबर 2009

कविता

कर्म ऐसे हों कि दुनिया याद रखें ,

तेरे ही दीदार को हर आँख तरसे ॥

मिलते बिछड़ते और जब भी हो जुदाई ,

अश्रु से परिपूर्ण हो तेरी बिदाई ॥

उस पथ के हों सह्श्त्रों अनुगामी ,

जिस पथ पर तू अकेला ही चला था ॥

4 टिप्‍पणियां:

Amit Kumar Yadav ने कहा…

Bahut sundar likha apne..badhai.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi sundar kavita,gahre ehsaas

रंजू भाटिया ने कहा…

बढ़िया लिखा है शुक्रिया

संजय भास्‍कर ने कहा…

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है