राह उड़ती धूल ने तुझको पुकारा '
और बहती पवन ने "दामन" संवारा !
मुस्कराते "चाँद" ने भी चाँदनी दी '
और "रजनी" तेरे ही आगोश में थी !
डगमगाते पग भी जब संवर न पायें '
तो बताओ राह चलकर क्या करोगे !
जिंदगी कि लहर में न टिक सके तो '
मौत कि पगडंडियों में भटकते रहोगे !
कदम क्योँ बढाते हो नजरें झुकाकर '
हो क्यों भागते दुःख से दामन छुडाकर !
झंझावतों से जो टकरा न पाए '
तो अंध-कन्दराऔ में भटकते रहोगे !
जब चिट्ठियों ने भरी पहली बार हवाई उड़ान : प्रयाग कुंभ मेले के दौरान 18 फरवरी
1911 को शुरू हुई थी दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा
-
कुंभ प्रयाग ही नहीं बल्कि संगम की रेती पर लगने वाला विश्व का सबसे बड़ा स्वतः
स्फूर्त आयोजन है। कुंभ सिर्फ मानवीय आयोजन नहीं बल्कि एक दैवीय और आध्यात्मिक
म...
1 दिन पहले
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर रचना । आभार
एक टिप्पणी भेजें