आवाज कुछ मुख से निकलती ,इससे पहले
फद्फदाकर पंख पंछी उड़ चला था
रात दिन जो कोसते उसको रहे थे
कह चले "इन्सान " वो कितना भला था
आज से पहले न था रब को पुकारा
ओउर देखा भी न था मन्दिर का द्वारा
गुरुद्वारे जा के भी न माथा टेका
घंट -नाद चर्च का भी न सुना था
आज पंछी उड़ चला थल छोड़कर जो
"भारती" मन्दिर न मस्जिद कर्बला था
जब चिट्ठियों ने भरी पहली बार हवाई उड़ान : प्रयाग कुंभ मेले के दौरान 18 फरवरी
1911 को शुरू हुई थी दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा
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कुंभ प्रयाग ही नहीं बल्कि संगम की रेती पर लगने वाला विश्व का सबसे बड़ा स्वतः
स्फूर्त आयोजन है। कुंभ सिर्फ मानवीय आयोजन नहीं बल्कि एक दैवीय और आध्यात्मिक
म...
1 दिन पहले
1 टिप्पणी:
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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