सोमवार, 7 सितंबर 2009

गजल

तनकर चलने से मिला कुछ भी नहीं ।
सत्य केवल "मौत'' के सिवा कुछ भी नहीं ॥
तनकर चलने वाले
दुःख ही देते हैं सदा ।
प्यार से बनकर लचीला
बाँटता चल सुख सदा ॥

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।