मेरा पहला गुरू
मां ने
बहुत सरल बहुत प्यारी
बहुत भोली
मां ने
बचपन में
मुझे एक गलत
आदत सिखा दी थी
कि सोने से पहले
एक बार
बीते दिन पर
नजर डालो और
सोचो कि तुमने
दिन भर क्या किया
बुरा या भला
सार्थक या निरर्थक
मां तो चली गई
सुदूर क्षितिज के पार
और बन गई
एक तारा नया
इधर जब रात उतरती है
और नींद की गोली खाकर
जब भी मैं सोने लगता हूं
तो अचानक
एक झटका सा लगता है
और
मैं सोचते बैठ जाता हूं
कि दिन भर मैंने
क्या kiya कि
आज के दिन
मैं कितनी बार मरा
कितनी बार जिया
फिर जिया
इसका हिसाब
बड़ा उलझन भरा है
मेरा वजूद जाने कितनी बार मरा है
यह दिन भी बेकार गया
मैंने देखे
मरीज बहुत
ठीक भी हुए कई
पर नहीं है
यह बात नई
इसी तरह तमाम जिन्दगी गई
जो भी था मन में
जिसे भी माना
मैंने सार्थक
तमाम उम्र भर
वह आज भी नहीं कर पाया मैं
न तो कभी
अपनी मर्जी से जिया
न ही
अपनी मर्जी से मर पाया मैं।
Postmaster General Krishna Kumar Yadav releases special cover on the Ram
Navami
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In a program organized under the aegis of Postal Department and Prayag
Philatelic Society, Postmaster General of Varanasi & Prayagraj Region Shri
Krishna...
1 दिन पहले
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