शुक्रवार, 29 जून 2012

kabooter bana Dakiya

पुराने समय में ही नहींए बल्कि 19 वीं सदी की शुरुआत में होने वाले पहले विश्वयुद्ध तक कबूतर से संदेश भेजा जाता था। कबूतरों में भी होमिंग प्रजाति इसके लिए विशेष रूप से जानी जाती थी। होमिंग प्रजाति के कबूतरों की विशेषता थी कि वे उन्हें एक जगह से अगर किसी जगह के लिए भेजा जाता तो वे अपना काम करने के बाद वापस लौटकर अपनी जगह आते थे। इससे संदेश पहुंच जाने की पुष्टि भी हो जाती थी। बताया जाता है कि होमिंग प्रजाति के कबूतर अपनी जगह से 1600 किमी आगे उड़कर जाने पर भी रास्ता भटके बिना वापस लौट आते थे। उनके उड़ने की रफ्तार भी 60 मील प्रति घंटा होती थी i

2 टिप्‍पणियां:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

सिया राम भारती जी बहुत अच्छी जानकारी ..वे दिन भी क्या दिन थे ....जा कबूतर जा ..जा
भ्रमर ५

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

सिया राम भारती जी बहुत अच्छी जानकारी ..वे दिन भी क्या दिन थे ....जा कबूतर जा ..जा
भ्रमर ५