मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

नारी

जन्म लेने से पहले ही
मार दी जाती है ‘बाला’
न रहम उसकी खातिर
न उसके पथ में ‘उजाला’

अगर बच गयी
यदि जन्म ले लिया तो
जकड़ दी जाती
फौलादी बेडियों में
दबकर, सिमट कर
है जीना उसकी फितरत
बसर कर रही है
कई भेडि़यों में

ले आवलम्बन अभी भी
सदा जी रही है
कटु, विष के प्याले
सदा पी रही है
कभी माता-पिता तो
कभी पति की दासी
है ‘ममता’ का सागर
रहती फिर भी है प्यासी
नहीं सुख का आंचल
”भारती“है गहरी उदासी



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