मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

मन मोहक बसंत

जब सरसों फूली हरी-हरी
भू ने पीताम्बर ओढ़ लिया
‘‘मधु‘‘-पवन-बसन्ती‘‘ डोल रही
नीलाम्बर ने मन मोह लिया

कोकिल ने गाया घूम-घूम
अमराई बागों में जाकर
नयी-नयी कोपलों ने
नमन किया बाहर आकर

ऐसी सज बैठी वसुन्धरा
धारण कर तन पर नये वस्त्र
मनमोहक छवि को निरख-निरख
सैनिक भी भूलें अस्त्र-शस्त्र

बाहर की छवि को देख-देख
कोयलें ऐसी मद-मस्त र्हुइं
कुटिल भावना त्याग-त्याग
झटपट अलिगंन बद्ध हुईं


सुगन्ध-समीर संग नृत्यरत
थल-अम्बर महकाती है
खिलते सरसों का पुष्प देख
वह मन्द-मन्द मुसकाती है

चहुँ ओर मधुर समीर बही
मद-मस्त बाग बौराय गये
सब प्रकृति-सुन्दरी देख-देख
सुन्दरता पर बौराय गये

कोयल की गूंजे कुहूँ-कुहूँ
भँवरें का गंुजन जारी है
सांरग का कलरव गूंज रहा
स्वर पर लय भी भारी है

नभ में हैं खुशियों के बादल
थल में पवन-बसन्ती नाच रही
सबका मन पुलकित हो जाये
भिन्न-भिन्न सुर साज रहीं

कुछ कुटिल कंटकों के मध्य
नेत्र ‘सुमन’ ने खोल दिये
साहस भर कर मुस्कान भरी
’मनमथ’ने निज पट खोल दिये

यह मास बसन्ती-अलबेला
लाता है ‘मन-भर खुशियाँ
सुख-रंग-बसन्ती रंग डालो
‘‘भारती’’ मन भर-भर खुशियाँ



(एस0 आर0 भारती)

6 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

जब सरसों फूली हरी-हरी
भू ने पीताम्बर ओढ़ लिया
‘‘मधु‘‘-पवन-बसन्ती‘‘ डोल रही
नीलाम्बर ने मन मोह लिया
...bahut sundar manmohak rachna... basant panchmi kee hardik shubhkamnayen

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुगन्ध-समीर संग नृत्यरत
थल-अम्बर महकाती है
खिलते सरसों का पुष्प देख
वह मन्द-मन्द मुसकाती है

सुंदर वासंतिक रचना ...... बसंतोत्सव की शुभकामनायें.....

केवल राम ने कहा…

बसंत के आगमन पर आपके द्वारा लिखी यह कविता बहुत उच्च कोटि की है ....कविता में भाव को जिस सहजता के साथ व्यक्त किया है ..बहुत सुंदर है ....आपका बहुत -बहुत शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए ....आशा है आप निरंतर मार्गदर्शन करते रहेंगे ...शुक्रिया

केवल राम ने कहा…

SR Bharti जी
आपकी सारी कवितायेँ संग्रह करने लायक हैं ....आपका लिंक मिल गया है अब इत्मिनान से पढूंगा .....हार्दिक शुभकामनायें

Akanksha Yadav ने कहा…

वसंती फिजा पर बेहतरीन कविता..बधाई.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

बसंत की शुभकामनाएं.