आवाज कुछ मुख से निकलती ,इससे पहले
फद्फदाकर पंख पंछी उड़ चला था
रात दिन जो कोसते उसको रहे थे
कह चले "इन्सान " वो कितना भला था
आज से पहले न था रब को पुकारा
ओउर देखा भी न था मन्दिर का द्वारा
गुरुद्वारे जा के भी न माथा टेका
घंट -नाद चर्च का भी न सुना था
आज पंछी उड़ चला थल छोड़कर जो
"भारती" मन्दिर न मस्जिद कर्बला था
पोस्टमास्टर जनरल एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव के जन्मदिन पर
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में ...
19 घंटे पहले
1 टिप्पणी:
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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