ताश का नशा
पत्ता फेंटत कर घिसा मिला न धन का ढेर ,
अबकी आए "लोभ" में बैठे रहे मुडेर ।
बैठे रहे मुडेर नही कुछ खाना पीना ,
चाहे छूटे घरद्वार चाहे रूठे "मीना "।
अपना ही हित सोंच लगायें नित नित बाजी,
चटखारे ले-लेकर करें हर बाजी ताजी।
खेलत - खेलत यदि कोई आ जाता व्यवधान ,
"Bharti " एक साथ मिल हो जाते "कर -चितवन" संधान ।