सोमवार, 19 अक्टूबर 2009

ताश का नशा

ताश का नशा

पत्ता फेंटत कर घिसा मिला न धन का ढेर ,

अबकी आए "लोभ" में बैठे रहे मुडेर ।

बैठे रहे मुडेर नही कुछ खाना पीना ,

चाहे छूटे घरद्वार चाहे रूठे "मीना "।

अपना ही हित सोंच लगायें नित नित बाजी,

चटखारे ले-लेकर करें हर बाजी ताजी।

खेलत - खेलत यदि कोई आ जाता व्यवधान ,

"Bharti " एक साथ मिल हो जाते "कर -चितवन" संधान ।

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

"गाँधी जी बने प्रेरक व्यक्तित्व वाले विश्व नायक "

  • आज
  • जहाँ भारतीय डाक विभाग विश्व डाक दिवस मना रहा है वहीं डाक विभाग ने गाँधी जी पर डाक टिकट छाप कर उन्हे प्रेरक व्यक्तित्व वाला विश्व नायक बना दिया है । डाक विभाग गाँधी जी पर इस समय एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है जिसमे कक्षा ३, ५ तथा ६ से ८ तक के विद्यार्थी भाग ले सकते हैं । सर्वोच्च निबंध लेखन के लिए डाक विभाग पुरुष्कार वितरित कर विजेता को प्रोत्साहित भी करेगा ।

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

राह उड़ती धूल ने तुझको पुकारा '
और बहती पवन ने "दामन" संवारा !
मुस्कराते "चाँद" ने भी चाँदनी दी '
और "रजनी" तेरे ही आगोश में थी !
डगमगाते पग भी जब संवर न पायें '
तो बताओ राह चलकर क्या करोगे !

जिंदगी कि लहर में न टिक सके तो '
मौत कि पगडंडियों में भटकते रहोगे !
कदम क्योँ बढाते हो नजरें झुकाकर '
हो क्यों भागते दुःख से दामन छुडाकर !
झंझावतों से जो टकरा न पाए '
तो अंध-कन्दराऔ में भटकते रहोगे !

बुधवार, 9 सितंबर 2009

कविता

कर्म ऐसे हों कि दुनिया याद रखें ,

तेरे ही दीदार को हर आँख तरसे ॥

मिलते बिछड़ते और जब भी हो जुदाई ,

अश्रु से परिपूर्ण हो तेरी बिदाई ॥

उस पथ के हों सह्श्त्रों अनुगामी ,

जिस पथ पर तू अकेला ही चला था ॥

सोमवार, 7 सितंबर 2009

गजल

तनकर चलने से मिला कुछ भी नहीं ।
सत्य केवल "मौत'' के सिवा कुछ भी नहीं ॥
तनकर चलने वाले
दुःख ही देते हैं सदा ।
प्यार से बनकर लचीला
बाँटता चल सुख सदा ॥

शनिवार, 5 सितंबर 2009

कविता

आवाज कुछ मुख से निकलती ,इससे पहले
फद्फदाकर पंख पंछी उड़ चला था
रात दिन जो कोसते उसको रहे थे
कह चले "इन्सान " वो कितना भला था
आज से पहले न था रब को पुकारा
ओउर देखा भी न था मन्दिर का द्वारा
गुरुद्वारे जा के भी न माथा टेका
घंट -नाद चर्च का भी न सुना था
आज पंछी उड़ चला थल छोड़कर जो
"भारती" मन्दिर न मस्जिद कर्बला था

मौत से इतना डरोगे तो बताओ

आनन्द जीने का भला क्या ले सकोगे

जिन्दगी जब मौत से हो जाय भारी

मौत से दामन छुडाकर कर क्या करोगे

सोमवार, 20 जुलाई 2009

खेलेंगी खुशियाँ

हर रात की सुबह होगी जरूर
फिर भी तडप-तड़पकर
क्यों हो जीने पर मजबूर
कभी तो महकेंगें, हर क्षण
तुम्हारी जीवन की बगिया के
खेलेंगी खुशियाँ
तुम्हारे दामन में भरपूर
और आयेंगे तुम्हारे द्वार
ढेरों खुशियों के उपहार
और तुम्हारे सारे दुःख
होगें तुमसे दूर !!!

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

प्रकृति के रंग

प्रकृति की दुनिया निहायत खूबसूरत है। आप भी इसे महसूस करें !!

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

मेरा प्रथम दिन

"भारती का ब्लॉग" पर आपका स्वागत है। ब्लोगिंग के क्षेत्र में मैं नया हूँ, अत: आप सभी के स्नेह तथा सहयोग का आकांक्षी हूँ ! शीघ्र ही रचनाओं एवं विचारों के साथ हाजिर हूँगा !!
एस.आर. भारती