सोमवार, 12 नवंबर 2012

एलियन द्वारा पृथ्वी लोक का अध्ययन

     एक एलियन मंच पर आया। तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो गयी। तालियों की गड़गड़ाहट थमने का नाम नहीं ले रहा था कि इसी बीच मंच पर मौजूद एलियन बोल पड़ा,‘हमारे ग्रह की प्यारी-प्यारी, भोली-भाली जनता सरकार ने आपकी खुशहाली के लिए नयी व्यवस्था की खोज में हमें दूसरे ग्रह पर भेजा था। हमने पूरे मनोयोग से अपने कत्र्तव्यों का निर्वहण किया है और आपके सामने उस अध्ययन का खुलासा कर रहे हैं, जो इस प्रकार है-
      जब हमने सुना कि पृथ्वीलोक में एक भारतभूमि भी है, जहाँ 33 करोड़़ देवी-देवता विराजते हैं। हमने सोचा कि जब इतने देवी-देवता वहाँ विराजते होंगे, तो वहाँ की जनता निश्चित रूप से बह्माण्ड के सारे ग्रहों से ज्यादा आनन्द और मस्ती में रहती होगी। सो हमने निर्णय किया कि पृथ्वीलोक की व्यवस्था और उनमें लगे लोगों का ही अध्ययन किया जाये, लेकिन जब हम भारत-भूमि पर उतरे, तो देखा कि यहाँ पर तो सब कझ्छ एक दम से उल्टा-पुल्टा है।
    हम ऐसी जगह गये जहाँ पर सारे लोग, विभिन्न ध्र्म-संप्रदायों के थे, विभिन्न संस्कृतियों के थे, कई-कई जातियों में बँटे हुए थे। उनका लालच, स्वार्थ और पैसे की भूख अंतहीन थी। घृणा, द्वेष और ईष्र्या तो जैसे लोगों में पैदाइशी हों। हमें और गहन अध्ययन करना था, पूछने पर हमें वहाँ बताया गया कि कचहरी परिसर में एक साथ सभी प्रकार के मनुष्यरूपी जीव मिल जायेंगे। हम कचरही परिसर में गये, जहाँ पर न्याय करने के लिए जज थे, पेशकार थे, वकील थे, मोवक्कील थे, पुलिस थी, चोर थे, पाकेटमार थे, झपटमार थे, पत्रकार वेश में बड़े-बड़े मक्कार थे, राजनीतिज्ञ ठग और गुण्डे थे, बड़ी-बड़ी दाढ़ी और गेरूआ वस्त्रों में पंडित और पुजारी थे, साधु बाबा आदि-आदि थे, जो किसी न किसी अपराध् में शामिल थे, बड़े-बड़े हाकिम थे, जिन्हें जनता की खुशहाली के लिए नियुक्ति की गयी थी, लेकिन यहाँ हमने देखा कि कोई भी बिना पैसे लिए किसी का कोई काम नहीं करता।
    यहाँ ठगी, वैमनस्यता और एक दूसरे को नोच-खाने के लिए तरह-तरह की दूकानें खुली हुई थीं, लूटने की प्रवृति लोगों के चेहरे पर साफ झलक रही थी। यहाँ सब कझ्छ दिखाई दिया, लेकिन बड़ा अफसोस और भारी मन से कहना पड़ रहा है कि कचहरी परिसर और भारत भूमि पर मनुष्य-रूपी जीव में मनुष्यता के दर्शन नहीं हुए। किसी में इंसानियत नहीं दिखी। जहाँ भी दीखी कराहती हुई, पीडि़त और प्रताडि़त रूप में दिखी।
 
     अब आप खुद फैसला करें कि हमें कैसी व्यवस्था चाहिए। सभा विसर्जित कर दी जाती है।

 
साभार अरुण कुमार झा
प्रधान संपादक (दृष्टिपात हिंदी मासिक)
प्रसारक -  सिया राम भारती 


 



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