मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी दिवस

हिंदी में बोलें और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं
आओ हम खुद को पहचानें
अंग्रेजी संग हुए बेगाने
जिसे बोलते जीभ लचकती
अधरों पर मुस्कान न आये
हिंदी में बोले और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं

हिंदी का आया पखवारा
भागी इंग्लिश देख अखारा
भाव बिखर कर गिरती जाती
हिंदी के सम्मुख टिक न पाती
कर्ण-प्रिय लगती निज भाषा
जन-जन में ये भाव जगाये
हिंदी में बोलें और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं

हिंदी की उन्नति के खातिर
तन-मन से यदि होंगें हाजिर
उन्नति अपनी ही होगी
दुनियां सपनों सी ही होगी
रहे अँधेरा न कहीं धरा पर
आओ ऐसा दीप जलाएं
हिंदी में बोलें और गायें
निशदिन हिंदी दिवस मनाएं





मंगलवार, 7 सितंबर 2010

कवित्व

चली चर्चा एक बार कवित्व पर
कि ‘कविता क्या होती है?
किसी ने कहा कि
‘कविता’ कवि का भाव है
‘कवि के विचारों का
क्रमात्मक बहाव है’
किसी ने सराहा कि
‘कवि अपने दर्द को
कागज पर उकेरता है’
अपने खुशी भरें पलो को
अंलकारों और रसों से संवार कर
लेखनी की उन्मत् चाल से
शब्दों को वाक्यों में पिरोकर
कागज पर सहेजता है
वह जो समाज में देखता है
उसे ही ढ़ालकर आइने में
समाज को आईना दिखाता है
कवि अपने कल्पना रूपी पंखो से
लेखनी की थिरकन पर
वहाँ पहुँच जाता है