बुधवार, 9 सितंबर 2009

कविता

कर्म ऐसे हों कि दुनिया याद रखें ,

तेरे ही दीदार को हर आँख तरसे ॥

मिलते बिछड़ते और जब भी हो जुदाई ,

अश्रु से परिपूर्ण हो तेरी बिदाई ॥

उस पथ के हों सह्श्त्रों अनुगामी ,

जिस पथ पर तू अकेला ही चला था ॥

सोमवार, 7 सितंबर 2009

गजल

तनकर चलने से मिला कुछ भी नहीं ।
सत्य केवल "मौत'' के सिवा कुछ भी नहीं ॥
तनकर चलने वाले
दुःख ही देते हैं सदा ।
प्यार से बनकर लचीला
बाँटता चल सुख सदा ॥

शनिवार, 5 सितंबर 2009

कविता

आवाज कुछ मुख से निकलती ,इससे पहले
फद्फदाकर पंख पंछी उड़ चला था
रात दिन जो कोसते उसको रहे थे
कह चले "इन्सान " वो कितना भला था
आज से पहले न था रब को पुकारा
ओउर देखा भी न था मन्दिर का द्वारा
गुरुद्वारे जा के भी न माथा टेका
घंट -नाद चर्च का भी न सुना था
आज पंछी उड़ चला थल छोड़कर जो
"भारती" मन्दिर न मस्जिद कर्बला था

मौत से इतना डरोगे तो बताओ

आनन्द जीने का भला क्या ले सकोगे

जिन्दगी जब मौत से हो जाय भारी

मौत से दामन छुडाकर कर क्या करोगे