सोमवार, 20 जुलाई 2009

खेलेंगी खुशियाँ

हर रात की सुबह होगी जरूर
फिर भी तडप-तड़पकर
क्यों हो जीने पर मजबूर
कभी तो महकेंगें, हर क्षण
तुम्हारी जीवन की बगिया के
खेलेंगी खुशियाँ
तुम्हारे दामन में भरपूर
और आयेंगे तुम्हारे द्वार
ढेरों खुशियों के उपहार
और तुम्हारे सारे दुःख
होगें तुमसे दूर !!!

7 टिप्‍पणियां:

शरद कुमार ने कहा…

Aap ki pahli kavita padne ko mili. Khusi hue. Bhut khoob.

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

"हर रात की सुबह होगी जरूर
फिर भी तडप-तड़पकर
क्यों हो जीने पर मजबूर"

यही तो त्रासदी है मनुष्य के सोंच और जीवन शैली की.
सुधार में सहयोग देने की हिमाकत करते नहीं, शार्टकट से धनी बनाने की ख्वाहिशे जरूर पाल लेते हैं .......

सुन्दर और गहरे भाव से भरी आपकी यह प्रस्तुति पसंद आयी.

आभार.

KK Yadav ने कहा…

Sundar abhivyakti..badhai !!

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

Wah....khub likha..Congts.

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Nice one.

पाखी की दुनिया में "बाइकिंग विद् पाखी" http://pakhi-akshita.blogspot.com/

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

शुभकामनाएं