शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

अप्रैल फूल

अप्रैल फूल (ना समझी से बचने का दिन )

अप्रैल की पहली तारीख को लोग गोपनीय रूप से मूर्ख बनाने का हर सम्भव प्रयास करते हैं और लोग अज्ञानता वश अपने भोलेपन तथा लालच एवं दबाव में आने के कारण सामूहिक हंसी का पात्र बन जाते हैं। जबकि सभी लोग यह भली भांति जानते हैं कि ना समझी अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसका निदान हम अपने में समझदारी का विकास कर उत्तम तरीके से कर सकते हैं। वैसे तो अप्रैल फूल के बारे में कई किवदंतियाँ प्रचलित हैं जिनका उल्लेख विभिन्न साहित्यक पुस्तकों में रोचक तरीके से किया गया है। इन प्रचलित किवदंतियों में से बहुत पुरानी किवदन्ती का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है।
उक्त कहानी एथेंस नामक शहर से जुड़ी हुई है जहाँ अप्रैल माह की पहली तारीख को एक हस्यास्पद घटना को नासमझ व्यक्ति को मूर्ख बनाने के लिए अंजाम दिया गया। एथेंस नामक नगर में चार मित्र रहते थे उनमें से एक मित्र अपने को सभी से अधिक बुद्धिमान समझता था उस पर प्रत्येक क्षण सभी के समक्ष अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का ही जुनून सवार रहता था। एक दिन उसने अपने मित्रों से कहा किमैं सब कुछ जानता हूँ। मुझसे किसी भी विषय पर पूछ सकते हो
बगिया पर पूछ या बाग पर पूछ।
हवा पर पूछ या आग पर पूछ।।
ताल पर पूछ या तड़ाग पर पूछ।
चिडि़या पर पूछ या चिराग पर पूछ।।
काशी पर पूछ या प्रयाग पर पूछ।
फूल पर पूछ या पराग पर पूछ।।
अजगर पर पूछ या नाग पर पूछ।
सब्जी पर पूछ या साग पर पूछ।।
धब्बे पर पूछ या दाग पर पूछ।
साबुन पर पूछ या झाग पर पूछ।।
गानें पर पूछ या राग पर पूछ।
होली पर पूछ या फाग पर पूछ।।
शादी पर पूछ या सुहाग पर पूछ।
गुणा पर पूछ या भाग पर पूछ।।
यदि मैं उत्तर दे पाया
तो जैसी चाहे वैसी मुड़ा मेरी मूँछ।।

उसके तीनों मित्रों ने यह तय किया कि ऐसे अहंकार युक्त ज्ञानी को सबक सिखाना ही पड़ेगा। तीनों ने उसे अपने पूर्ण विश्वास में लिया और बनायी गयी योजना के अनुसार भेद खोला कि उन तीनों के सपने में माँ दुर्गा ने बताया है कि वे अपै्रल की पहली रात को ऊँचे पर्वत की चोटी पर अपनी दिव्य ज्योति प्रकट करेंगीं जो उस दिव्य ज्योति का प्रथम दर्शन करेगा वह दिन का महान ज्ञानी हो जायेगा। अहंकार युक्त ज्ञानी मित्रों की बातों में गया और पर्वत की चोटी पर दिव्य ज्योति के दर्षन के लिये पहुँच गया। उधर मित्रों ने षहर के समस्त वासियों को अज्ञानी का मूर्खता से भरा तमाशा देखने के लिए एकत्रित कर लिया।

समय का अनुसरण करते हुए सूर्य ने चादर ओढ़ी, संध्या के पश्चात रात्रि अपने पूर्ण यौवन पर पहुँची, चन्द्र देव अपने पूरे दल बल सहित आये और समस्त तारों को यथा स्थान तैनात किया पवन ने अपनी मस्ती में पेड़ों को भी खूब झुमाया। नदी और झरनों का जल भी बिना कोई बुद्धि लगाये ही अनवरत अबिरल गति से कर्ण प्रिय स्वरों में गुनगुनाता हुआ अपनी मंजिल की ओर बढ़ता रहा किन्तु वह अज्ञानी दिव्य ज्योति के प्रथम दर्षन की आष लगाये भोर तक बैठा रहा और पौ फटने के साथ ही वह अपने मित्रों पर नेत्रों से ज्वाला बरसाते हुए फट पड़ा। तीनों मित्रों के साथ सारा शहर उस अज्ञानी पर मुक्त कण्ठ से ठहाके लगा-लगाकर खूब हँसा और वह अहंकार युक्त अज्ञानी महामूर्ख की पदवी से नवाज कर पहली बार अपै्रल फूल बनाया गया।
भारतीय पण्डों को जो धर्म के नाम पर लोगों को लूटते और ढ़गते रहतें थे उन्हें भी सबक सिखाने के उद्देष्य से साहित्यविद् भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी के द्वारा पहली अपै्रल को मूर्ख बनाने के कई रोचक प्रसंग भी सुने गये हैं। इस युक्ति का प्रयोग तत्कालीन कवियों द्वारा जन समूह को अपनी रचनायें सुनाने में भी किया गया। आज के दौर में पहली अपै्रल को अपै्रल फूल बनाने की पाश्चात्य सभ्यता हमारे भारतीय परिवेश में इस तरह रच बस गयी कि लोग मौके का फायदा उठाकर श्व्यम को श्रेष्ठ और दूसरों को मूर्ख बनाने की प्रवृत्ति में लिप्त होने लगे हैं। यह पश्च्यात प्रवृत्ति जहाँ तथाकथित अज्ञानियों का मनोरंजन करती है वहीँ हमारी भारतीय संस्कृति पर एक कुठाराघात भी साबित होती है जो पीडि़त में निराशावादी विचारों को जन्म देती है।
इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण गलतियों से बचने के लिए किसी गीतकार द्वारा सचेत करने के प्रयोजन से ही निम्न पंक्तियों की रचना को जन्म दिया

समझ समझकर
समझ को समझो
समझ समझना भी एक समझ है।
समझ समझकर भी जो समझे
मेरी समझ में वो नासमझ है।

इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है।

समझ समझ करके इतना समझें
समझ समझने में ही समझदारी।
समझ समझ करके भी यदि समझें
समझ लो नासमझी से है पक्की यारी।।
भारतीय परिवेश में अपै्रल बहुत महत्वपूर्ण माह है। इस माह जहाँ भारतीय नव वर्श प्रारम्भ होता है वहीँ अपै्रल की प्रथम तारीख को ही व्यापारिक वर्गों तथा वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का नव आर्थिक वर्ष भी प्रारम्भ होता है। विगत वर्श के समस्त लेखे,बहियां आदि संजोकर अलग रख दी जाती हैं तथा नये बही-खाते आकर्षक रूपों में तैयार करके नये बजट एवं नयी योजनाओं के साथ सतर्क समझदारी बरतते हुए विकास के पथ पर अग्रसर रहने के लिए शुरू किये जाते हैं। अर्थात मुक्तकण्ठ से सहर्ष कहा जा सकता है कि पहली अपै्रल कोई मूर्ख बनाने का नही बल्कि सतर्क रहते हुए नासमझी से बचने का दिन है अथवा वर्ष भर के लिए को मानसिक तथा शारीरिक रूप से इतना सस्कत बनाने का दिन है जिससे दैनिक कार्यविधियों, क्रियाकलापों एवं कार्यप्रणाली में समुचित तथा सुव्यवस्थित रूप से सम्पूर्ण कार्यक्षमता का भरपूर प्रयोग किया जा सके।


2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्या अंदाज है
.........मूर्खता दिवस पर बधाइयाँ

Amrita Tanmay ने कहा…

Mazedar post..