शनिवार, 8 मई 2010

मातृत्व-दिवस पर विशेष



माँ


मेरी प्राणों से प्यारी माँ


तेरी विनती करता हूँ


मझधार में भटका हूँ


मुझे छोड़ न जाना तू


मेरी प्राणों..............




तेरा हाथ रहे सर पे


मेरा ‘जीवन’ उठ बैठे


मझधार में प्राण फंसे


मुझे पार लगाना तू


मेरी प्राणों.......




जब भी लडखडाये कदम


तुने थामा है तन मेरा
जब -जब हुआ मन मैला


तुने धोया है मन मेरा




तू दुर्गुण -नशनी है


तुझे शत-शत जपता हूँ ।


मेरी प्राणों से प्यारी तेरी


विनती करता हूँ
मझाधार में भटका हूँ


मुझे छोड़ न जाना तू

3 टिप्‍पणियां:

raghav ने कहा…

भारती जी
ब्हुत सुन्दर कवित लिखी आपने आपको बधायी

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Der se aaya, par durust aaya...
Achha likhe hain aap!
Ek prayas mera bhi....
मेरा जीवन मेरी साँसे,
ये तेरा एक उपकार है माँ!

तेरे अरमानों की पलकों में,
मेरा हर सपना साकार है माँ!

तेरी छाया मेरा सरमाया,
तेरे बिन ये जग अस्वीकार है माँ!

मैं छू लूं बुलंदी को चाहे,
तू ही तो मेरा आधार है माँ!

तेरा बिम्ब है मेरी सीरत में,
तूने ही दिए विचार हैं माँ!

तू ही है भगवान मेरा,
तुझसे ही ये संसार है माँ!

सूरज को दिखाता दीपक हूँ,
फिर भी तेरा आभार है माँ!

संजय भास्‍कर ने कहा…

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर