राह उड़ती धूल ने तुझको पुकारा '
और बहती पवन ने "दामन" संवारा !
मुस्कराते "चाँद" ने भी चाँदनी दी '
और "रजनी" तेरे ही आगोश में थी !
डगमगाते पग भी जब संवर न पायें '
तो बताओ राह चलकर क्या करोगे !
जिंदगी कि लहर में न टिक सके तो '
मौत कि पगडंडियों में भटकते रहोगे !
कदम क्योँ बढाते हो नजरें झुकाकर '
हो क्यों भागते दुःख से दामन छुडाकर !
झंझावतों से जो टकरा न पाए '
तो अंध-कन्दराऔ में भटकते रहोगे !
Shree Dwarkadhish Temple : द्वारकाधीश श्री कृष्ण की द्वारका नगरी आज भी
रहस्यमयी है
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वर्तमान उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृन्दावन में पले-बढे और रास-लीला रचाते
कृष्ण-कन्हैया गुजरात में आकर द्वारकाधीश हो जाते हैं। हम लोग उनकी बाल-लीला,
रास-ली...
3 दिन पहले
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर रचना । आभार
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