शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

चोर

आओ उनकी याद दिलायें
जो अब नहीं मिलते
जो अपने फटे मामलों को
कभी नही सिलते
ये हैं लुटिया चोर, टिकिया
चोर मुर्गी चोर , अण्डा चोर
ये चोर वक्त की करवट की तरह
अब ठण्डे आमलेट हो गये हैं
वक्त की पर्त में लम्पलेट हो गये हैं
आज आधुनिक युग विकसित चोर पाये जाते हैं
जैसे ‘कर’ चोर, बिजली चोर
ये चोर बहुतायत में पाये जाते हैं
आज ‘चित-चोर’ की जगह
‘‘वित्त-चोर’’ का बोल बाला है
इस चोर ने समाज औ सरकार का
हर नट-बोल्ट खोल डाला है
इन नये चोरों का एक ही सिद्धान्त है
इनकी कृत्य की कड़ी का अलबेला वृतान्त है
कि केवल वित्त ही चुराओ
यदि कभी पकडे़ जाओं
तो ‘‘वित्त’’ देकर ही
सामने वाले का ‘चित’ चुराओ

सोमवार, 3 जनवरी 2011

मेरा बचपन

अब मैंने भी सीखा पढ़ना ,
छोड़ दिया दीदी संग लड़ना

रोज सुबह उठकर मम्मा संग,
अपनी ढूँढू कापी
छोड़ी मैंने चाकलेट,
खाना छोड़ा टाफी
पीना सीखा दूध गरम
अब छोड़ दिया है रसना

अब मैंने भी सीखा पढ़ना ,
छोड़ दिया दीदी संग लड़ना

मैं भी अपने पापा के संग
अब रोज नहाता हूँ।
उससे पहले झटपट निशदिन
माॅर्निंग-वाक पे जाता हूँ।

खेल-खेल में हँस कर पढ़ना,
है अब दिनचर्या मेरी
दादी-दादा के संग रहना,
अब है परिचर्चा मेरी
मुझे डाँटते अब भैया,
खूब प्यार करे अब बहना।

अब मैंने भी सीखा पढ़ना ,
छोड़ दिया दीदी संग लड़ना