बुधवार, 22 दिसंबर 2010

ये कैसा हिन्दुस्तान

कटघरे में खड़ा मीडिया
जो है चैथा स्तम्भ
हम हिन्दुस्तानी होने का
फिर भी भरते ‘दम्भ’

फिर भी भरते ‘दम्भ’
निज ढ़पली ही रहे बजाते
नाकामी, भ्रस्टाचारों से
निषदिन देष को रहे सजाते

निषदिन देष को रहे सजाते
मंहगाई औ घोटालों से
जनता का पैसा रहे लूटते
मंचों औ चैपालों से

राज काज भी हुआ स्वार्थी
मरती जनता भूखी
सत्ता लोलुप नभ में घूमें
कुछ लोग न पायें सूखी

कुछ लोग न पायें सूखी
नही उनके सिर छत है
मुक्त कराया देष आज
सैनानी आहत हैं ।

सैनानी आहत हैं,
फैली चारों ओर उदासी
मीडिया और प्रषासन
बन गया नेताओं की दासी

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

06 December, 2010

सिकंदर को कौन समझाए !!!
- रश्मि प्रभा...

कोई मानना नहीं चाहता
सही शब्दों में कहें
तो स्वीकार करना नहीं चाहता
कि जिस धरती पर खून खराबे हुए
जहाँ अपमान के शूल बिछाए गए
वहाँ कोई घर बन सकता है
और वहाँ की दीवारें गा सकती हैं !....
अपने 'स्व' की मद में डूबा इन्सान
सूक्तियां बोलता है
रुपयों के बल पर
सिकंदर बनता है
पर एक टूटी झोपड़ी
महल के अस्तित्व को फीका कर जाये
बर्दाश्त नहीं कर पाता है
हर मोड़ पर झोपड़ी की रोटी का सोंधापन
प्रतिस्पर्धा का सबब बन जाता है
....
दुखद तो है
पर कड़वा सत्य है
महल के हर कदम
फैसले की मुहर लिए बढ़ते हैं
'झोपड़ी को तोड़ दिया जाये' !
जब जब यह फैसला होता है
उस दिन झोपड़ी की दीवारें नहीं गातीं
....
और भगवान् -
जी जान से नई धुन बनाता है
दीवारों को जिंदा करने के लिए
खुद गाता है
....
अब यह सिकंदर को कौन समझाए !!!