शुक्रवार, 21 मई 2010

दलित उत्थान ओंर मायावती

शास्त्रों के अनुसार महिलाओं और शूद्रों को समान अधिकार प्राप्त थे जहाँ शूद्रों से धार्मिक पूजा पाठ सम्बन्धी कार्यों की अपेक्षा नहीं की जाती थी उसी प्रकार महिलाओं को शिक्षा ग्रहण का अधिकार प्राप्त नहीं था। महिलाओं को कुविचारी, स्तैण, दुष्ट और चंचल माना जाता था। ऐसी मान्यता थी कि यदि कोई स्त्री शिक्षा ग्रहण करती है तो उसे बंध्यता का शिकार होना पड़ेगा। वह पति के घर वालों की इज्जत नहीं करेगी और वह जिद्दी स्वभाव की हो जायेगी। समाज में उसके बोलने पर भी प्रतिबन्ध था। यदि कोई परिवार उसकी बुद्धि के अनुसार चलेगा तो उस परिवार का विनाश हो जायेगा। शास्त्रों में वर्णित पूर्व समाज के अनुसार स्त्री मात्र ‘परायी अबला‘ थी उसे अपने पूरे जीवन भर माता-पिता, भाई, पति और उसके परिवार वालों के ही अधीन अपना जीवन गुजारना पड़ता था यहाँ तक उसके पैरों में चप्पल अथवा जूता पहनना भी अशुभ माना जाता था। समाज में स्त्री दोष और अज्ञानता का भण्डार मानी जाती थी। पूर्व समाज के अनुसार स्त्री को शिक्षित करना बन्दर के हाथ में उस्तरा देने के बराबर माना जाता था।
परन्तु ऐसे ही समाज में जन्मी और पली-बढ़ी एक ऐसी महिला जिसने शास्त्रों में वर्णित स्त्री से सम्बन्धित समस्त कुरीतियों की वर्जनाओं को नकारते हुए क्रूर समाज के सभी दुष्कृत्यों और आलोचनाओं का विरोध करने और उससे उत्पन्न पीड़ा को सहन करते हुए एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया जिसे आज के महिला समाज ही नहीं वरन् विश्व के सभी वर्गों द्वारा सराहा जा रहा है। आज उन्हें ‘‘लौह-महिला‘‘ के विशेषण से भी सम्बोधित किया जाता है। हर दलित महिला के दिल पर जिनका एक क्षत्र राज है जिन्हे आम जन बहन मायावती एवं दलितों की देवी के नाम से जानते हैं। भले ही उन्हें कई महिलाओं ने प्रत्यक्ष रूप से न देखा हो परन्तु वे उनकी छवि को आत्मसात करने का प्रयास करती हैं और उनके संघर्षमय जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन के उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं।
सुश्री मायावती जी ने ‘बहुजन हिताय‘ को ध्यान में रखते हुए उनके कल्याण के लिए भीमराव अम्बेडकर द्वारा चलाये गये अभियान को भली-भाँति निरंतर आगे बढ़ाने हेतु उत्तरोत्तर एवं सफल प्रयास किया। उनके ही सफल प्रयासों के द्वारा आज दलित खुलकर एवं स्वतंत्रता पूर्वक सवर्णों तथा मनुवादियों के क्रूर चंगुल से मुक्ति पाकर, निर्वाध रुप से जीवन यापन कर रहा है। सुश्री मायावती जी के स्त्री शिक्षा एवं महिला आरक्षण पर अधिक जोर देने के कारण ही आज ‘’महिला साक्षरता‘’ तथा ’’नारी सशक्तीकरण’’ प्रतिशत में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में उनकी निर्भीकता और अदम्य साहस से परिपूर्ण प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की प्रेरणा लेकर आज दलित समुदाय अपनी बात खुलकर प्रस्तुत करते हुए एक नये रूप में अपनी प्रतिभा को निखार कर समाज में प्रस्तुत कर पा रहा है और निरंतर अपना नैतिक स्तर ऊँचा उठाते हुए अपने रहन-सहन में सुधार लाने में कामयाब हो रहा है अर्थात् दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि दलित समुदाय की स्वतंत्र विचार अभिव्यक्ति, नैतिक उन्नति तथा रहन-सहन में सुधार संबन्धी अन्य क्रिया-कलापों में उत्तरोत्तर प्रगति का श्रेय सुश्री मायावती जी को ही जाता है। उन्हें एक ऐसे समाज की जननी कहा जा सकता है जिसके समुचित एवं सुव्यवस्थित निर्माण हेतु उन्होंने अपना पारिवारिक जीवन ही त्याग दिया।
प्राचीन सामाजिक परिवेश की दासता से दलित समुदाय को मुक्त कराने हेतु जो आन्दोलन उनके द्वारा चलाया गया उसमें उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। आज दलित गण अधिकार सहित जो भी सुख-सुविधायें प्राप्त कर रहे हैं, अच्छा वेतन प्राप्त कर रहे हैं, अच्छे एवं ऊँचे पदों पर पहुँच रहे हैं एवं अच्छी जिन्दगी बसर कर रहे हैं। इन समस्त सुख-सुविधाओं की नीव में जहाँ भीमराव अम्बेडकर तथा अन्य महापुरूषों की कुर्बानियां, उनके द्वारा किये गये संघर्ष तथा त्याग की भावना समाहित है वहीं पर अम्बेडकर जी द्वारा चलाये गये आन्दोलनों को भली-भाँति आगे बढ़ाने में सुश्री मायावती जी के पूर्ण एवं सफल योगदान को किंचित मात्र भी नकारा नहीं जा सकता।
शास्त्रों में भी महापुरुषों द्वारा कहा गया है कि ‘‘नारी उन सप्त रत्नों मे सर्व श्रेष्ठ है जो किसी को भी चक्रवर्ती अर्थात विश्व सम्राट बना सकती है। जिस देश अथवा परिवार का समाज एवं व्यक्ति नारी को सम्मान नहीं देता, उसे देय स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता और उसे किसी भी प्रकार का दुःख पहुँचाता है तो उस समाज अथवा व्यक्ति का विनाश निश्चित होता है।‘‘ परन्तु हमारा समाज शास्त्रों को ही मानता है, उनकी पूजा करता है, उसमें लिखी बातों को शुभ अवसरों पर प्रवचन तथा अन्य रुपों में श्रवण करता है। फिर भी कभी-कभी निजी स्वार्थों में लिप्त होकर मात्र तुच्छ लाभ के लिए शास्त्रों में वर्णित सद्वचनों को आत्मसात करने के बजाय उन्हे समूल नकार देता है। कुछ साल पहले घटी उस घटना को याद करके बड़ा आश्चर्य होता है कि हिन्दू परम्पराओं पर आधारित जीवन यापन करने वाले समाज के कुछ बुद्धिजीवी राजनीतिक एवं भ्रष्ट तत्वों द्वारा विधान सभा के अन्दर सुश्री मायावती जी की प्रतिष्ठा को नष्ट करने का असफल प्रयास करने का दुःसाहस किया गया और उनकी जान लेने की कोशिश की गयी। उक्त घटना की राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर घोर निन्दा की गयी।
यहाँ यह भी सराहनीय है कि सुश्री मायावती जी ने अपने शासन काल में लोक कल्याण संबंधी कई योजनाएं चलायीं फलस्वरूप प्रदेश प्रगति की ओर निरन्तर बढ़ता गया। उनके शासन काल में कानून व्यवस्था पूर्णतयः प्रजातन्त्र पर आधारित एवं प्रजा को संतुष्ट करने वाली रही तथा दंगों एवं भ्रष्टाचार का ग्राफ घटता गया। उनके पूर्व शासनकाल की एक घटना आज भी याद आती है जब राजधानी के किसी व्यवसायी के पुत्र का अपहरण हो गया था और विपक्षी दलों के दबाव के कारण उसकी खोजबीन में लापरवाही बरती जा रही थी तब सुश्री मायावती जी का एक ही ‘‘आदेश‘‘ जो उन्होंने पुलिस तन्त्र को दिया और उसके अनुपालन में अपृहत बच्चे की बरामदगी मात्र कुछ ही घण्टों में हो गयी अर्थात यह कहा जा सकता है कि उनके शासन काल में सामाजिक सुरक्षा प्रणाली अत्यधिक व्यवस्थित तथा ठोस रुप से लागू रही। समाज की उन्नति एवं रक्षा के लिए उन्होंने हर सम्भव प्रयास किया।
माननीय श्री कांशीराम के बाद बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार सम्भालते हुए उन्होंने प्रतिक्षण दलित समुदाय के हितों के लिए अपना पूर्ण योगदान दिया है। अपने इस अनूठे योगदान के कारण ही आज भी वे सत्ता में है। विपक्षी पार्टियों के घोर विरोध के बावजूद सत्ता में रहते हुए आज भी वे निरंतर लोकहित की बात उठाया करती हैं। उनकी नजर में ’’दलित’’ वह है जो समाज में दबा कुचला हुआ है जो कथित दबंगों द्वारा दासता में जकड़ा हुआ तथा कमजोर एवं शोषित है चाहे वह किसी भी जाति एवं वर्ग का क्यों न हो उसे वह दलित समुदाय का अंश मानती हैं और उन्होंने संकल्प लिया है कि इस वर्ग को सबल बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है ताकि यह वर्ग भी समाज में अपना आस्तित्व बनाये रखने में सक्षम हो और देश की सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक उन्नति में सहभागी हो, अर्थात यह कहा जा सकता है कि दलित समुदाय के हितों एवं अधिकारों की रक्षा करना ही उनका नैतिक एवं मौलिक दायित्व है।

शनिवार, 8 मई 2010

मातृत्व-दिवस पर विशेष



माँ


मेरी प्राणों से प्यारी माँ


तेरी विनती करता हूँ


मझधार में भटका हूँ


मुझे छोड़ न जाना तू


मेरी प्राणों..............




तेरा हाथ रहे सर पे


मेरा ‘जीवन’ उठ बैठे


मझधार में प्राण फंसे


मुझे पार लगाना तू


मेरी प्राणों.......




जब भी लडखडाये कदम


तुने थामा है तन मेरा
जब -जब हुआ मन मैला


तुने धोया है मन मेरा




तू दुर्गुण -नशनी है


तुझे शत-शत जपता हूँ ।


मेरी प्राणों से प्यारी तेरी


विनती करता हूँ
मझाधार में भटका हूँ


मुझे छोड़ न जाना तू

माँ - मात्रत्व दिवस पर विशेष



मेरी-माँ
माँ वह शब्द ,
जो मेरे मुह से पहली बार निकला
माँ वह वजूद जो मेरे साथ
हर कदम पर रही

माँ वह देवी ,
जिसकी वात्सल्य -छावं में ,
मै पला ,संवरा और आगे बढ़ा

माँ वह शक्ति जिसने मुझे
हर नजर और हर बला से बचाया
माँ वह अद्भुत शक्ति ,
जिस मैंने अपने लिए
हर जगह मह्सूश किया

माँ वह रछक जिसे मैंने ,
हमेशा अपने लिए ही पाया
माँ वह शिछ्क जिसने मुझे
पहला पाठ पढाया

माँ वह सच्ची , पथप्रदर्शक
जिसने मुझे हर राह बताई
जिसने मुझे हर युक्ति सुझाई

माँ वह सलाहकार ,
जिसने मुझे सच्चे दोस्त की तरह
हमेशा सच्ची तथा निःशुल्क सलाह देकर
जीवन के हर मोड़ पर जीवित रहने हेतु
सामर्थ्यता का वरदान दिया